जूते की अभिलाषा
जूते की अभिलाषा चाह नही मैं विश्वसुंदरी के, पग में पहना जाऊँ। चाह नही दूल्हे के पग में रह, साली को ललचाऊँ। चाह नहीं धनिकों के चरणों में, हे हरि! डाला जाऊँ। ए.सी. में कालीन पे घूमूं, और भाग्य पर इठलाऊं। बस निकालकर मुझे पैर से उस मुंह पर तुम देना फेंक। जिस मुँह से भी निकले देशद्रोह का शब्द भी एक।