Posts

Showing posts from 2017

देश का अपमान है इटली में शादी...

Image
देश का अपमान है इटली में शादी... क्या भारत माँ का आँचल इतना छोटा हो गया है कि इस देश की 220 करोड़ की सम्पत्ति की मालकिन बेटी अनुष्का शर्मा और 390 करोड़ की सम्पत्ति के मालिक बेटे विराट कोहली को इटली में जाके शादी रचानी पड़ी ? माना आप स्वतंत्र है लेकिन आप एक वैश्विक स्तर की हस्ती भी है। अगर आप ऐसा करते है तो मेरे विचार से और एक भारतीय होने के नाते जहां आपने 220 करोड़ इस धरती से कमाए है, इस धरती पर उगे हुए अन्न को खाकर आपने अपनी भूख मिटाई और आज अपनी जिंदगी के सबसे बेहतर पल मनाने इटली चले गए। कुछ कथित बुद्धजीवियों की नजर में यह कोई बड़ी बात नही है लेकिन इसके लिए दोनो की जितनी निंदा की जाए कम ध्।

जूते की अभिलाषा

Image
जूते की अभिलाषा चाह नही मैं विश्वसुंदरी के, पग में पहना जाऊँ। चाह नही दूल्हे के पग में रह, साली को ललचाऊँ। चाह नहीं धनिकों के चरणों में, हे हरि! डाला जाऊँ। ए.सी. में कालीन पे घूमूं, और भाग्य पर इठलाऊं। बस निकालकर मुझे पैर से उस मुंह पर तुम देना फेंक। जिस मुँह से भी निकले देशद्रोह का शब्द भी एक।

बेजमीरों के अज़्म पुख़्ता हैं...

Image
बेजमीरों के अज़्म पुख़्ता हैं... रूबरू जब कोई हुआ ही नहीं ताक़े दिल पर दिया जला ही नहीं ज़ुल्मतें यूं न मिट सकीं अब तक कोई बस्ती में घर जला ही नहीं बेजमीरों के अज़्म पुख़्ता हैं ज़र्फ़दारों में हौसला ही नहीं नक़्श चेहरे के पढ़ लिये उसने दिल की तहरीर को पढ़ा ही नहीं उम्र भर वह रहा तसव्वुर में दिल की ज़ीनत मगर बना ही नहीं हमने अश्कों पर कर लिया क़ाबू ग़म का तूफ़ान जब रुका ही नहीं वह अंधेरे का दर्द क्या जाने ? जिसका ज़ुल्मत से वास्ता ही नहीं

गाय को आश्रय सबकी जिम्मेदारी

Image
गाय को आश्रय सबकी जि़म्मेदारी गाय की रक्षा के मुद्दे पर आए दिन अराजकता फैल रही है। समाज के कुछ कथित गौ सेवकों को गाय की रक्षा का काम मिल गया है। यह बात दीगर है कि उनकी नजर उन गायों पर नहीं जाती है जो रोजाना पालीथीन खाकर दम तोड़ती हैं। हजारों गायों को आश्रय तक उपलब्ध नहीं है, रोजाना सड़कों पर विचरण करना ही उनके भाग्य में लिखा है। गाय की रक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। भारतीय समाज में इसको यूं ही नहीं उच्च स्थान मिला है। बेशक समाज के लिए गाय एक उपयोगी पशु है। मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहना जरूरी हो गया है कि गाय पर सियासत बंद होनी चाहिए। सियासी और मजहबी चश्मे को उतारकर मौजूदा दौर में जरूरत इस बात की है कि हर हाल में गाय की रक्षा होनी ही चाहिए। हिन्दू धर्म में ही नहीं बल्कि इस्लाम में भी गाय के महत्व का बखान किया गया है। कुरआन में तो गाय और उसके दूध खूब तारीफ की गई है। इस्लामिक ऐतबार से भी गाय की हिफाजत बहुत जरूरी है।     गाय पर राजनीति से बेहतर है कि सरकार एक सुझाव पर अमल कर ले। वह यह कि सरकार की तरफ से यह ऐलान कर दिया जाए कि कि कल से गाय का गोबर 5 रुपये

...भेष बनाए हुए हैं लोग

Image
...भेष बनाए हुए हैं लोग कुछ इस तरह का भेष बनाए हुए हैं लोग, जैसे कि देव लोक से आए हुए हैं लोग। आवाजें सुन न पाए समय, वर्तमान की, प्राचीनता का शोर मचाए हुए हैं लोग। हैं नहीं वो खुद को दिखाने की फिक्र में, चेहरे पर इश्तहार लगाए हुए हैं लोग। बेकारी, बीमारी , अशिक्षा की आग से, कुर्सी तो अपनी अपनी बचाए हुए हैं लोग। अब कुछ ही छायादार पेड़ और बचे हैं, उन पे भी गिद्ध दृष्टि जमाए हुए हैं लोग। रहने न देते दीप, तेल , बाती आसपास, कुछ रौशनी से खौफ सा खाए हुए हैं लोग। गाता है कौन , गाता नहीं, बन्दे मातरम कितना अहम सवाल उठाए हुए लोग। - - - - - - - - - - - काले को सफेद बना देते हैं लोग, झूठ को सच बना देते हैं लोग। तिल तिल पिसता गरीब देश का, गाय, गोबर में उलझा देते हैं लोग। -----अज्ञात-----

'बुलेट' का लेट होना ही बेहतर...!

Image
'बुलेट' का लेट होना ही बेहतर...! खतौली/ मुजफ्फरनगर भीषण रेल हादसे के बाद तो यही तमन्ना की सकती है कि हिन्दुस्तान में बुलेट का लेट होना ही बेहतर है। वैसे तो देश में बुलेट चलाने का फैसला अच्छा बात है। विकास के लिहाज से यह दूरगामी सोच है। फिलहाल खतौली रेल हादसे से हमें सबक लेना जरूरी हो गया है। पहला सबक, यह कि बुलेट से पहले उन रेलवे ट्रक को दुरुस्त करने पर ध्यान दिया जाए, जो ब्रिटिश साम्राज्य से हमें सौगात में मिले थे। दूसरा सबक, यह कि बुनियादी समस्याओं और जरूरतों को नजरअंदाज करके बड़े झूठ न बोले जाएं। आखिर लफ्फाजी के दम पर टिके रहने की भी कोई मियाद होती है, कोरी बयानबाजी से जनता को कब तक बेवकूफ बनाया जा सकेगा ? हादसे के बाद मौतों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। सोचिए, जरा बुलेट ट्रेन के साथ ऐसा हादसा होता तो...? ऐसा खयाल करने भर से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।      खराब ट्रैक के मामले में कोई भी अपनी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। अच्छे कारनामों और उपलब्धियों का श्रेय जब लपक कर हासिल किया जाता है तो नैतिकता के नाते इस हादसे की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। अब अपने बचाव के लिए निम्न

जातिवाद की जड़ें वाकई बहुत गहरी हैं

Image
जातिवाद की जड़ें वाकई बहुत गहरी हैं आशीष सक्सेना जातिवाद    की जड़ें वाकई बहुत गहरी हैं। हालांकि बदलाव भी है। गहराई नापने के लिए नगर निगम में नाला सफाई करने वालों का जायजा लिया गया। अब इस काम में गैर वाल्मीकि भी हैं, ओबीसी जातियों के भी हैं। वे भी वही काम करते हैं और वाल्मीकि भी, मतलब नाला सफाई। इसके बावजूद जब हाजिरी के लिए सब बैठे होते हैं और कोई वाल्मीकि अपने हाथ से उन्हें प्रसाद भी दे तो वे नहीं लेते, सुर्ती भी नहीं खाते उनके हाथ की।      बदलाव ये है कि दलित जातियों में जाटव, धोबी आदि अगर शिक्षित और नौकरपेशा हैं तो उन्हें थोड़ी जिद्दोजहद के बाद कमरा मिल जाएगा गैर दलित के बीच। पिछड़ी जातियों में यादव, कुर्मी, मौर्य काफी मुखर और सशक्त हो गए हैं लेकिन ब्राह्मणवादी सोच के लोगों को शीर्ष पदों पर नहीं सुहाते। हम तो एक उदाहरण ही देंगे फिलहाल।     केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री संतोष गंगवार सात बार सांसद बन गए लेकिन उन्हें कभी कैबिनेट में नहीं लिया गया। इसकी क्या वजह हो सकती है, उनका चेहरा ज्यादा चिकना नहीं है या वे कुर्मी हैं इसलिए। प्रदेश में जो अगड़म बगड़म सरकार भाजपा की चल रही है

ज़िंदगी धर्म से नहीं, ऑक्सीज़न से चलती है

Image
ज़िंदगी धर्म से नहीं, ऑक्सीज़न से चलती है हिंदुस्तानियों खैर मनाओ कि गोरखपुर में मरने वाले 63 बच्चे गरीबों के थे। अगर गाय के होते तो अब तक देश (गौ) भक्त ईंट से ईंट बजा देते।     75/80 सांसद वाली पार्टी लीडर और 337/403 विधायक वाले यूपी के CM कह रहे हैं "गंदगी से हुई हैं मौतें।" इसका मतलब 4 साल से "स्वच्छ भारत अभियान" विदेश में चल रहा था ??? अब तो पता चल गया न, जिंदगी मंदिर-मस्जिद से नहीं, ऑक्सीजन से चलती है...!

फिरकापरस्तों के मुंह पर तमाचा रहा स्वतंत्रता दिवस

Image
फिरकापरस्तों के मुंह पर तमाचा रहा स्वतंत्रता दिवस हज के दौरान सऊदी अरब में भारतीय तिरंगा झंडा फहराया जाना एक स्वच्छ संदेश की मिसाल है। खबर है कि वहां हिन्दुस्तानी हाजियों ने अपने मुल्क की आज़ादी का जश्न मनाया। इसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। खासतौर पर यह उन लोगों के लिए एक सीख और वहम दूर करने का भी मौका है, जो एक वर्ग विशेष को शक की नजर से देखते हैं। बरेली हज सेवा समिति के सचिव शराफत खान ने सऊदी अरब में भारतीय हाजियों के साथ तिरंगा झंडा फहराया और मिठाइयां बांटकर आजादी का जश्न मनाया। हज के दौरान इस तरह की गतिविधियां अपने मुल्क से मुहब्बत का पुख्ता सुबूत है। कहने को तो कोई, कुछ भी कह सकता है और कैसा भी इल्जाम लगा सकता है। यह उन लोगों फिरकापरस्तों के मुंह पर करारा तमाचा भी है जो एक वर्ग विशेष को शक की नजर से देखते हैं।       उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को तो कुछ लोगों की देशभक्ति पर भी शक है। मिसाल के तौर पर मदरसों को तो यहां तक शक की नजर से देखा जा रहा है कि सरकार ने वहां तिरंगा फहराने और राष्ट्रीय गान गाने का फरमान जारी किया था। इतना ही नहीं सारी गतिविधियों की वीडियोग्राफी क

सीएम ने इस्लामिक कानून पर अमल किया

सीएम ने इस्लामिक कानून पर अमल किया आतिर साहब की वाल से इस मैटर को कापी किया गया है। उसको वैसा ही पेश किया जा रहा है... मैं यूपी के नए मुख्यमंत्री का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ, जिन्होंने जानबूझकर या अनजाने में इस्लामिक कानून जैसे कानून यूपी में लागू कर दिए। जैसे कि... गैरकानूनी कत्लखाने मतलब चोरी की रोजी मतलब हराम रिज्क जो अल्लाह को पसन्द नहीं। अब वह नए सिरे से लाइसेंस देंगे और रोजी को हलाल बनाएंगे। लड़कियों का गेर महरम लड़को के साथ घूमना शरीयत में मंजुर नहीँ इसलिए लिव इन रिलेशन जेसे तमाम हराम कामों पर पाबन्दी। पान गुटखा कोई भी नशा इस्लाम में मकरूह और हराम है। उसे बैन कर वजीर ए आला योगी आदित्यनाथ ने इस्लामिक फर्ज निभाया है। इसी उत्साह के साथ में अच्छे फैसलों के लिए योगी का समर्थन करता हूं और आशा करता हूँ कि योगी जी अपने पूरे कार्यकाल में समाजसुधारक फैसले लेकर एक नया इतिहास बनाएंगे। दुआ करता हुँ कि योगी जी अब हिन्दू-मुस्लिम के बीच खाई पैदा करने वाले बयानों से परहेज करेंगे।

पैसे को सब कुछ समझने वाले अपना इलाज कराएं

Image
पैसे  को सब कुछ समझने वाले अपना इलाज कराएं यह मैसेज मेरे एक दोस्त ने भेजा है, उसकी कॉपी पेश कर रहा हूँ... जैसे-जैसे  मेरी उम्र में वृद्धि होती गई, मुझे समझ आती गई कि अगर मैं Rs. 3000 की घड़ी पहनू या Rs. 30000 की दोनों समय एक जैसा ही बताएंगी..! मेरे पास Rs. 3000 का बैग हो या Rs. 30000 का, इसके अंदर के सामान मे कोई परिवर्तन नहीं होंगा। !          मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में, तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा।! आखिर में मुझे यह भी पता चला कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करू या इक्नामी क्लास में अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा। इसलिए अपने बच्चों को अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत करो बल्कि उन्हें यह सिखाओ कि वे खुश कैसे रह सकते हैं और जब बड़े हों, तो चीजों के महत्व को देखें उसकी कीमत को नहीं ....। दिल को दुनिया से न लगाएं क्योंकि वह नश्वर है, बल्कि धर्म से लगाओ क्योंकि वही बाकी रहने वाली है... फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था- ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों से पैसा निकालना होता

कर्मचारी, नेता दोनों 50 साल में हों रिटायर

Image
कर्मचारी, नेता दोनों 50 साल में हों रिटायर उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि कि 50 साल से ज्यादा उम्र के कर्मचारियों की कार्य कुशलता की समीक्षा की जाएगी। उसके आधार पर सरकार की तरफ से उन्हें रिटायर कर दिया जाएगा। एक तरह से सरकार की यह सोच सही है कि जो कर्मचारी काम करने अयोग्य हो तो उसको सरकार की तरफ से ही रिटायर कर दिया जाए। इसकाएक बड़ा फायदा यह होगा कि सरकार को बेवजह कर्मचारी को ढोना नहीं पड़ेगा। दूसरे, यह कि शिक्षित युवा बेरोजगारों को सेवा का मौका मिलेगा। बेशक दूरदर्शी सरकार की यह बेहतरीन सोच है।       कर्मचारियों की ही तरह यह बात नेताओं पर भी लागू होनी चाहिए। कर्मचारी विभाग का एक पटल संभालते हैं, जबकि हमारे वोट से चुने गए नेता पूरा प्रदेश और देश चलाते हैं। कर्मचारियों से ज्यादा जिम्मेदारी नेताओं के कंधों पर रहती है। इसलिए जनता को भी चाहिए कि ग्राम पंचायत/वार्ड से लेकर एम.पी. तक ऐसे किसी नेता को वोट न दें जिसकी उम्र 50 साल से ज्यादा हो। आखिर यह कौन सा मानक है कि 50 साल का कर्मचारी बूढ़ा और 50 साल का नेता जवान होगा? नेताओं को भी 50 की उम्र में रिटायर किया जाना चाहिए। इसका एक फायदा

गौण होने लगे विकास के मुद्दे

Image
गौण होने लगे विकास के मुद्दे इस समय देश की राजनीति किधर जा रही है, कुछ कहा नहीं जा सकता। विकास की तो शायद ही किसी को फिक्र हो। न कोई विचार है, न चिंतन। सियासत करने वालों पर तो सिर्फ सत्ता की भूख हावी है। सच कहा जाए तो धर्म ही एक ऐसा मुद्दा है, जिसके सहारे सत्ता सुख के चरम तक पहुंचा जा सकता है। बस, तरीका आना चाहिए उसको भुनाने का। विकास के इतर चर्चित विषय हैं, जिनका देश के विकास में जरा सा भी योगदान नहीं है। जैसे-राम मंदिर, लव जिहाद, घर वापसी, गौ रक्षा-गौ मांस, सहिष्णुता, असहिष्णुता, शाहरुख खान, आमिर खान, सलमान खान, कन्हैया, भारत माता की जय, वंदे मातरम्, कश्मीर सर्जिकल स्ट्राइक, तलाक व पर्सनल लॉ कानून, 500, 1000 के नोट बंद होना, अजान... आदि। इन नए मुद्दों ने पूरे तीन साल मीडिया को व्यस्त रखा। वहीं आम आदमी की बुनियादी जरूरतों से जुड़े सवालों को सिरे से ही गायब कर दिया। काबिले गौर यह भी है... क्या इन तीन सालों में कभी आपने टीवी पर सरकारी शिक्षा के गिरते स्तर पर बहस देखी? ग्रामीण भारत में आज भी जारी बाल विवाह की समस्या पर एक्सपर्ट्स की कोई टीम टीवी पर देखी? सड़को पर भीख मांगत

सच्चाई जानकर शिक्षामित्रों से हमदर्दी करें

Image
सच्चाई जानकर शिक्षामित्रों से हमदर्दी करें बहुत से कथित काबिल लोगों की शिक्षामित्रों के बारे में नकारात्मक राय है। ऐसा नहीं है कि किसी भी समूह में सभी नाकाबिल होते हैं या सभी काबिल हों। शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द होने के बाद उन पर क्या बीत रही है, यह वही जानते होंगे। दुख की इस घड़ी में उनका समर्थन करने के बजाय नकारात्मक बातें की जा रही हैं मैं जो गलत है। उनकी काबिलियत पर शक न करते हुए तथ्यों के धरातल पर भी जाना जरूरी है-  सन 2000 से पहले शिक्षक बनने की योग्यता इंटर थी। उसी आधार पर शिक्षा विभाग ने ग्राम पंचायत और न्याय पंचायत स्तर पर मेरिट के आधार सबसे योग्य अभ्यर्थी मानकर शिक्षामित्रों का चयन किया। ईमानदारी और पारदर्शिता के लिहाज से पंचायती राज व्यवस्था की बुनियादी इकाई ग्राम पंचायत को चयन की जिम्मेदारी दी गई। तमाम स्कूलों में ताले लटके रहते थे, वहां जाकर शिक्षा विभाग को संजीवनी देने का काम इन शिक्षामित्रों ने ही किया। उस समय के हालात के अनुसारये योग्य थे, मानदेय सिर्फ 2250 रुपये था। 1998 से पहले जो शिक्षक नियुक्त हुए वह भी हाई स्कूल और इंटर पास ही थे। आज बी.एड. की डिग्री क

तात्कालिक सरकार की गलती, भुगत रहे शिक्षामित्र

Image
तात्कालिक सरकार की गलती, भुगत रहे शिक्षामित्र शिक्षामित्र समायोजन पर हाई कोर्ट के फैसले के बारे में क्या कहूँ? क्योंकि वो सर्वोच्च अदालत है, कोई टिप्पणी बनती ही नही। हमारे देश का कानून कहता कि जिसका दोष हो सजा उसको ही मिले, लेकिन न जाने कितने बेकसूर हैं जो किसी और के किये की सजा भुगत रहे हैं। उन बेकसूरों में आज 1.72 लाख लोग शामिल हैं। जरा सोचिए, कहा जाए कि मुझे डीएम बना दिया जाए तो क्या ऐसा मुमकिन है? क्या कोई मुझे डीएम बना देगा? नही बिल्कुल नही। बेचारे 2250 रुपये प्रतिमाह से नौकरी शुरू करके 3500 रुपये तक पहुंचे थे।       सरकार ने उन्हें दूरस्थ शिक्षा के जरिए बी.टी.सी. कराई, फिर इनका समायोजन किया। सरकार उनको माननीय हाई कोर्ट के समायोजन रद्द करने के बावजूद लगभग 2 साल तक वेतन भी देती रही। फिर अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उनके समायोजन को रद्द कर दिया। इसके लिए जिम्मेदार किसे माना जाए? वह लोग जो 3500 रुपये प्रतिमाह नौकरी कर रहे थे या फिर सरकार? जो उंगली से पौंचा पकड़कर समायोजन तक ले गई। क्या सरकार को नही पता था कि जिस आधार पर सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करके उनका समायोजन किया जा रह

जरूरी है तकनीक का सकारात्मक इस्तेमाल

Image
जरूरी है तकनीक का सकारात्मक इस्तेमाल आज कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें तकनीकी सोच के बिना काम हो सके। इस लिहाज से तकनीक का इस्तेमाल जरूरी हो गया है। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि तकनीक के इस्तेमाल का नजरिया सकारात्मक होना चाहिए। एक वक्त था जब सोशल मीडिया स्वच्छ विचारों के आदान-प्रदान और दिलों को जोड़ने के काम आता था। इसके उलट आज हालात यह हैं कि यह माध्यम अब एक-दूसरे पर छींटाकशी और बुराइयां फैलाने का प्लेटफार्म साबित हो रहा है। सोशल साइटों पर लोग सांप्रदायिकता को भ्ीा बढ़ावा देने से बाज नहीं आ रहे हैं। अक्सर ऐसे मामलों में आपसी तनाव और कानूनी कार्रवाइयां भी सामने आती रहती हैं। आमतौर पर युवा नेट और मोबाइल का इस्तेमाल सिर्फ मौज-मस्ती के लिए ही कर रहे हैं। यह दायरा सिर्फ निठल्ला चिंतन तक सीमित होकर रह गया है।     ऐसे यूजर्स की संख्या पांच से 10 फीसद ही होगी जो नेट के जरिए अपने जरूरी कामों को अंजाम देते हों। मिसाल के तौर पर ई लेन-देन, अपना या परिवार वालों का मोबाइल रिचार्ज, घर का डिश रीचार्ज, बिजली बिल का भुगतान, बच्चों की फीस, गैस, गृह कर, वाटर बिल भुगतान, रेल-बस टिकट, किफायती खरीदा

दिखावे के दौर में इनका क्या काम ?

Image
दिखावे के दौर में इनका क्या काम ? कुछ दिन पहले की ही तो बात है। मैं एक गुरुतुल्य सीनियर साथी के यहां गया। आखिर एक अरसा अभी तो हो गया था उनसे मुलाकात हुए। यह वह हस्ती है जिसने मुझे क़लम पकड़ने का तरीका और सलीक़ सिखाया है। ज़्यादा तो नहीं लेकिन उनका पहले दिन का सबक तो आज भी याद है। उन्होंने समझाया था कि छोटे वाक्य लिखा करो, भाषा सहज और सरल, लेखन की भाषा पाठक या समुदाय के अनुसार हो। इसके अलावा और भी बहुत कुछ सिखाया था।      मुझे देखकर उनकी आंखों में एक अजीब सी चमक आ गई। चलिए, खैर... मैंने अपने हाथ का पैकेट उनकी तरफ बढ़ाया। बोले- अब यह तो नहीं कहूंगा कि इसकी क्या ज़रूरत थी, इसकी ज़रूरत तो तेरी भावनाएं ही समझती होंगी... इतना कहकर कुछ देर के लिए वह निशब्द से हो गए। इस बुीच मैंने भी खामोशी की चादर ओढ़ ली। फिर गुरुजी ने ही सन्नाटा तोड़ा, बेटा! इतवार तो हर हफ्ते आता होगा? उनके इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। हां, इस बात का एहसास हो चला था कि शहर की आबो-हवा मुझ पर भी असर अंदाज हो चुकी है। मैं भी तरक़्क़ीयाफ्ता (प्रगतिशील) समाज का ही एक हिस्सा हो चुका हूं। सीखने-सिखाने के सेशन अब मो

हम्द पाक

हमदे पाक मुक़द्दर जब मिरी आंखों में आंसू भेज देता है, मिरा मौला मिरी कश्ती लबे जू भेज देता है। सजा देता है फिक्रो फन की राहों को मिरा मौला, क़लमकारों की तहरीरों में जादू भेज देता है। इरादा जब भी करता हूं मैं हम्दे पाक लिखने का, कलम में और लफजों में वह खुष्बू भेज देता है। अंधेरों के मनाजि़र जब मिरी हस्ती में आते हैं, मकाने दिल में रहमत के वह जुगनू भेज देता है। मुझे अपनी खताओं पर नदामत जब भी होती है, पषेमानी के आंखों में वह आंसू भेज देता है। जहां पर कुक्रो जुल्मत के बना करते हैं मनसूबे, खुदा तनवीर वहदत की उसी सू भेज देता है। हमारी जिंदगानी की मिटा देता है तारीकी, अंधेरी रहगुजारों में वह जुगनू भेज देता है।

आंगन में खुशहाली लेकर लौटेगी गौरैया

Image
आंगन में खुशहाली लेकर लौटेगी गौरैया नटखट बचपन में तरंगे पैदा करने के लिए गौरैया का नाम जरूर आता है। बच्चा गौरैया या ऐसी ही चिडि़ंयों को देखकर मचलता जरूर है। बात कोई बहुत ज्यादा पुरानी नहीं है। कोई एक-डेढ़ दशक पहले ज्यादातर घरों में गौरैया का घोंसला जरूर होता था। घोंसला न भी हो तो यह इंसानी दोस्त घर की मुंडेर पर आकर आकर बैठ जाती थी, फिर इधर-उधर फुदक कर उड़ जाती थी। खेत-खलियान, बस-रेलवे स्टेशनों पर इनके झुंड नजर आते थे। पुराने जमाने में गौरैया को खुशी, फुर्ती, आजादी, रिवायत, संस्कृति का प्रतीक माना जाता था। अब इस पर ऐसा संकट आया है कि यह विलुप्त हो चुकी है और बमुश्किल नजर आती है। कुछ पक्षी प्रेमी आज भी इसको संरक्षण देने और बचाने में लगे हैं। खत्म होने के कारण: गौरैया को सबसे ज्यादा रेडिएशन ने नुकसान पहुंचाया है। चूंकि मोबाइल जिंदगी की हम जरूरत बन चुका है, इसलिए मजबूत सिगनल के लिए हाई फिरिक्वेंसी टॉवर लगाए जा रहे हैं। पर्यावरण विद बताते हैं कि टॉवर से निकलने वाले रेडिएशन में ऐसी क्षमता होती है जिससे गौरैया के अंडे नष्ट हो जाते हैं। वाहनों की बढ़ती तादाद भी इनको नष्ट करने में कम ज

बूचड़खानों के खिलाफ मुहिम, समझ से परे

Image
बूचड़खानों के खिलाफ मुहिम, समझ से परे बूचड़खानों के खिलाफ मुहिम का मामला आम इंसान की समझ से परे नजर आता है। हर कोई यह जानने को बेताब है कि यह मुहिम पशुवध के खिलाफ है या वर्ग विशेष और छोटे-मोटे कारोबारियों को डराने-धमकाने के लिए ? अगर पशुवध गलत है तो फिर कुछ खास कारोबारियों को हजारों की पशु काटने का लाइसेंस क्यों ? वजह साफ है सुगबुगाहट के अनुसार ये लोग आपको चुनौती देने की तैयारी में हैं। आल इंडिया मीट एंड लाइवस्टाक एक्सपोर्टर्स का कहना है कि इस ज्यादती खिलाफ वह कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।      वैसे भी सत्तारूढ़ भाजपा ने उत्तर प्रदेश में सभी मशीनी बूचड़खाने बंद करने का वादा किया था। इस वादे पर अमल करने में सरकार को केंद्र में अपनी ही पार्टी की नीतियों के खिलाफ कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में सूबे के सभी मशीनी बूचड़खानों को बंद करने का वादा किया था। इसे अमली जामा पहनाने की दिशा में योगी सरकार का कहना है कि यू.पी. में चल रहे अवैध बूचड़खानों को बंद कराना और मशीनी पशु वधशालाओं पर प्रतिबंध उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है।      आल इंडिया मीट एंड ला

रोमियो-वोमियो तो खेल है

Image
रोमियो-वोमियो तो खेल है...   यूपी सरकार ने आज ही शासनादेश जारी किया है जिसमें अंतरधार्मिक और अंतर्जातीय विवाह करने वालों को प्रोत्साहन राशि जारी की गई है। ऐसा करने पर 50 हजार रुपये मिलेंगे। जाहिर है ऐसे विवाह घर वाले तो करते नहीं, आमतौर पर प्रेम विवाह ही होते हैं। मतलब जाति-धर्म का बंधन तोड़कर विवाह। वैसे ये प्रोत्साहन बरसों से दिया जा रहा है, कानूनन है, फिर भी न जाने क्यों इस प्रकार के विवाह समाज में सामान्य बात बने, ऐसा राजनीति और सामाजिक ढांचा नहीं चाहता। लव जेहाद या ऐसे ही कई शब्द गढ़कर ऑनर किलिंग जैसे अपराध को बढ़ावा दिया जाता है। आज एक शासनादेश और जारी हुआ है, योगी सरकार लैपटॉप वितरण योजना को पूरी तरह ठप नहीं कर रही। जिनको नहीं मिला, उन्हें उतने पैसे मिलेंगे, वह भी इस वित्तीय वर्ष के खत्म होने से पहले।

सर तो कटा सकते हैं, सर को झुका सकते नहीं

Image
- अरशद रसूल सर तो कटा सकते हैं, सर को झुका सकते नही... इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके...यह देश है तुम्हारा नेता तुम्हीं हो कल के... सचमुच शकील बदायूंनी के ये गीत नहीं बल्कि एक आंदोलन है। बरसों पुराने ये नगमे आज भी अमर और लाजवाब है। इनको सुनकर देश के जांबाज सैनिकों के खून में दुश्मन के खिलाफ उबाल आता है तो नौनिहालों के मन में देशभक्ति की भावना के अंकुर जरूर फूटते हैं। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या अन्य राष्ट्रीय पर्वों पर इन गीतों की गूंज कानों में रस जरूर घोलती है। इल्म से फ़िल्म तक का कामयाब सफ़र तय करके तमाम फिल्मों में सदाबहार नगमे लिखकर वो अमर हा गए।     आमतौर पर शकील बदायूंनी को रूमानी शायर कहा जाता है। अगर ईमानदारी के चश्मे से देखा जाए तो उनके कलाम में हर वह रंग शामिल है, जिसकी समाज को दरकार है। उनके कलाम में साक़ी, मयखाना, शिकस्ता दिल, जिगर वगैरह सभी का बेहद ख़ूबसूरती के साथ जिक्र मिलता है। साथ ही उन्होंने समाज की सच्ची तस्वीर को भी अपने अलफ़ाज़ में बयां किया है। अपने गीत और ग़ज़लों के जरिए शकील आज भी जिंदा हैं। उन्होंने सभी तरह की शायरी की, चाहे वह रूमानी हो या मज