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Showing posts from March, 2017

जरूरी है तकनीक का सकारात्मक इस्तेमाल

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जरूरी है तकनीक का सकारात्मक इस्तेमाल आज कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें तकनीकी सोच के बिना काम हो सके। इस लिहाज से तकनीक का इस्तेमाल जरूरी हो गया है। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि तकनीक के इस्तेमाल का नजरिया सकारात्मक होना चाहिए। एक वक्त था जब सोशल मीडिया स्वच्छ विचारों के आदान-प्रदान और दिलों को जोड़ने के काम आता था। इसके उलट आज हालात यह हैं कि यह माध्यम अब एक-दूसरे पर छींटाकशी और बुराइयां फैलाने का प्लेटफार्म साबित हो रहा है। सोशल साइटों पर लोग सांप्रदायिकता को भ्ीा बढ़ावा देने से बाज नहीं आ रहे हैं। अक्सर ऐसे मामलों में आपसी तनाव और कानूनी कार्रवाइयां भी सामने आती रहती हैं। आमतौर पर युवा नेट और मोबाइल का इस्तेमाल सिर्फ मौज-मस्ती के लिए ही कर रहे हैं। यह दायरा सिर्फ निठल्ला चिंतन तक सीमित होकर रह गया है।     ऐसे यूजर्स की संख्या पांच से 10 फीसद ही होगी जो नेट के जरिए अपने जरूरी कामों को अंजाम देते हों। मिसाल के तौर पर ई लेन-देन, अपना या परिवार वालों का मोबाइल रिचार्ज, घर का डिश रीचार्ज, बिजली बिल का भुगतान, बच्चों की फीस, गैस, गृह कर, वाटर बिल भुगतान, रेल-बस टिकट, किफायती खरीदा

दिखावे के दौर में इनका क्या काम ?

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दिखावे के दौर में इनका क्या काम ? कुछ दिन पहले की ही तो बात है। मैं एक गुरुतुल्य सीनियर साथी के यहां गया। आखिर एक अरसा अभी तो हो गया था उनसे मुलाकात हुए। यह वह हस्ती है जिसने मुझे क़लम पकड़ने का तरीका और सलीक़ सिखाया है। ज़्यादा तो नहीं लेकिन उनका पहले दिन का सबक तो आज भी याद है। उन्होंने समझाया था कि छोटे वाक्य लिखा करो, भाषा सहज और सरल, लेखन की भाषा पाठक या समुदाय के अनुसार हो। इसके अलावा और भी बहुत कुछ सिखाया था।      मुझे देखकर उनकी आंखों में एक अजीब सी चमक आ गई। चलिए, खैर... मैंने अपने हाथ का पैकेट उनकी तरफ बढ़ाया। बोले- अब यह तो नहीं कहूंगा कि इसकी क्या ज़रूरत थी, इसकी ज़रूरत तो तेरी भावनाएं ही समझती होंगी... इतना कहकर कुछ देर के लिए वह निशब्द से हो गए। इस बुीच मैंने भी खामोशी की चादर ओढ़ ली। फिर गुरुजी ने ही सन्नाटा तोड़ा, बेटा! इतवार तो हर हफ्ते आता होगा? उनके इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। हां, इस बात का एहसास हो चला था कि शहर की आबो-हवा मुझ पर भी असर अंदाज हो चुकी है। मैं भी तरक़्क़ीयाफ्ता (प्रगतिशील) समाज का ही एक हिस्सा हो चुका हूं। सीखने-सिखाने के सेशन अब मो

हम्द पाक

हमदे पाक मुक़द्दर जब मिरी आंखों में आंसू भेज देता है, मिरा मौला मिरी कश्ती लबे जू भेज देता है। सजा देता है फिक्रो फन की राहों को मिरा मौला, क़लमकारों की तहरीरों में जादू भेज देता है। इरादा जब भी करता हूं मैं हम्दे पाक लिखने का, कलम में और लफजों में वह खुष्बू भेज देता है। अंधेरों के मनाजि़र जब मिरी हस्ती में आते हैं, मकाने दिल में रहमत के वह जुगनू भेज देता है। मुझे अपनी खताओं पर नदामत जब भी होती है, पषेमानी के आंखों में वह आंसू भेज देता है। जहां पर कुक्रो जुल्मत के बना करते हैं मनसूबे, खुदा तनवीर वहदत की उसी सू भेज देता है। हमारी जिंदगानी की मिटा देता है तारीकी, अंधेरी रहगुजारों में वह जुगनू भेज देता है।

आंगन में खुशहाली लेकर लौटेगी गौरैया

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आंगन में खुशहाली लेकर लौटेगी गौरैया नटखट बचपन में तरंगे पैदा करने के लिए गौरैया का नाम जरूर आता है। बच्चा गौरैया या ऐसी ही चिडि़ंयों को देखकर मचलता जरूर है। बात कोई बहुत ज्यादा पुरानी नहीं है। कोई एक-डेढ़ दशक पहले ज्यादातर घरों में गौरैया का घोंसला जरूर होता था। घोंसला न भी हो तो यह इंसानी दोस्त घर की मुंडेर पर आकर आकर बैठ जाती थी, फिर इधर-उधर फुदक कर उड़ जाती थी। खेत-खलियान, बस-रेलवे स्टेशनों पर इनके झुंड नजर आते थे। पुराने जमाने में गौरैया को खुशी, फुर्ती, आजादी, रिवायत, संस्कृति का प्रतीक माना जाता था। अब इस पर ऐसा संकट आया है कि यह विलुप्त हो चुकी है और बमुश्किल नजर आती है। कुछ पक्षी प्रेमी आज भी इसको संरक्षण देने और बचाने में लगे हैं। खत्म होने के कारण: गौरैया को सबसे ज्यादा रेडिएशन ने नुकसान पहुंचाया है। चूंकि मोबाइल जिंदगी की हम जरूरत बन चुका है, इसलिए मजबूत सिगनल के लिए हाई फिरिक्वेंसी टॉवर लगाए जा रहे हैं। पर्यावरण विद बताते हैं कि टॉवर से निकलने वाले रेडिएशन में ऐसी क्षमता होती है जिससे गौरैया के अंडे नष्ट हो जाते हैं। वाहनों की बढ़ती तादाद भी इनको नष्ट करने में कम ज

बूचड़खानों के खिलाफ मुहिम, समझ से परे

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बूचड़खानों के खिलाफ मुहिम, समझ से परे बूचड़खानों के खिलाफ मुहिम का मामला आम इंसान की समझ से परे नजर आता है। हर कोई यह जानने को बेताब है कि यह मुहिम पशुवध के खिलाफ है या वर्ग विशेष और छोटे-मोटे कारोबारियों को डराने-धमकाने के लिए ? अगर पशुवध गलत है तो फिर कुछ खास कारोबारियों को हजारों की पशु काटने का लाइसेंस क्यों ? वजह साफ है सुगबुगाहट के अनुसार ये लोग आपको चुनौती देने की तैयारी में हैं। आल इंडिया मीट एंड लाइवस्टाक एक्सपोर्टर्स का कहना है कि इस ज्यादती खिलाफ वह कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।      वैसे भी सत्तारूढ़ भाजपा ने उत्तर प्रदेश में सभी मशीनी बूचड़खाने बंद करने का वादा किया था। इस वादे पर अमल करने में सरकार को केंद्र में अपनी ही पार्टी की नीतियों के खिलाफ कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में सूबे के सभी मशीनी बूचड़खानों को बंद करने का वादा किया था। इसे अमली जामा पहनाने की दिशा में योगी सरकार का कहना है कि यू.पी. में चल रहे अवैध बूचड़खानों को बंद कराना और मशीनी पशु वधशालाओं पर प्रतिबंध उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है।      आल इंडिया मीट एंड ला

रोमियो-वोमियो तो खेल है

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रोमियो-वोमियो तो खेल है...   यूपी सरकार ने आज ही शासनादेश जारी किया है जिसमें अंतरधार्मिक और अंतर्जातीय विवाह करने वालों को प्रोत्साहन राशि जारी की गई है। ऐसा करने पर 50 हजार रुपये मिलेंगे। जाहिर है ऐसे विवाह घर वाले तो करते नहीं, आमतौर पर प्रेम विवाह ही होते हैं। मतलब जाति-धर्म का बंधन तोड़कर विवाह। वैसे ये प्रोत्साहन बरसों से दिया जा रहा है, कानूनन है, फिर भी न जाने क्यों इस प्रकार के विवाह समाज में सामान्य बात बने, ऐसा राजनीति और सामाजिक ढांचा नहीं चाहता। लव जेहाद या ऐसे ही कई शब्द गढ़कर ऑनर किलिंग जैसे अपराध को बढ़ावा दिया जाता है। आज एक शासनादेश और जारी हुआ है, योगी सरकार लैपटॉप वितरण योजना को पूरी तरह ठप नहीं कर रही। जिनको नहीं मिला, उन्हें उतने पैसे मिलेंगे, वह भी इस वित्तीय वर्ष के खत्म होने से पहले।

सर तो कटा सकते हैं, सर को झुका सकते नहीं

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- अरशद रसूल सर तो कटा सकते हैं, सर को झुका सकते नही... इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके...यह देश है तुम्हारा नेता तुम्हीं हो कल के... सचमुच शकील बदायूंनी के ये गीत नहीं बल्कि एक आंदोलन है। बरसों पुराने ये नगमे आज भी अमर और लाजवाब है। इनको सुनकर देश के जांबाज सैनिकों के खून में दुश्मन के खिलाफ उबाल आता है तो नौनिहालों के मन में देशभक्ति की भावना के अंकुर जरूर फूटते हैं। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या अन्य राष्ट्रीय पर्वों पर इन गीतों की गूंज कानों में रस जरूर घोलती है। इल्म से फ़िल्म तक का कामयाब सफ़र तय करके तमाम फिल्मों में सदाबहार नगमे लिखकर वो अमर हा गए।     आमतौर पर शकील बदायूंनी को रूमानी शायर कहा जाता है। अगर ईमानदारी के चश्मे से देखा जाए तो उनके कलाम में हर वह रंग शामिल है, जिसकी समाज को दरकार है। उनके कलाम में साक़ी, मयखाना, शिकस्ता दिल, जिगर वगैरह सभी का बेहद ख़ूबसूरती के साथ जिक्र मिलता है। साथ ही उन्होंने समाज की सच्ची तस्वीर को भी अपने अलफ़ाज़ में बयां किया है। अपने गीत और ग़ज़लों के जरिए शकील आज भी जिंदा हैं। उन्होंने सभी तरह की शायरी की, चाहे वह रूमानी हो या मज