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Showing posts from February, 2019

लहू के आंसू गिरने लगे आसमान से

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लहू के आंसू... कौन रुख़सत हुआ है हिन्दुस्तान से लहू के आंसू गिरने लगे आसमान से देखे थे जो सपने सब चकनाचूर हुए तार-तार सब उनके शुभ दस्तूर हुए नहीं मिलेंगे वो हमको इतने दूर हुए भेजा था सीमा पर किस अरमान से    कौन रुख़सत हुआ है हिन्दुस्तान से    लहू के आंसू गिरने लगे आसमान से आंधियों से तूफां बनकर टकरा गया फर्ज था उसका निभाकर चला गया जैसे वह सोचकर निकला हो घर से तिरंगे में लिपटकर आऊंगा शान से    कौन रुख़सत हुआ है हिन्दुस्तान से    लहू के आंसू गिरने लगे आसमान से बरबाद नहीं होगी वीर! कुर्बानी तेरी ओ दुश्मन याद दिला देंगे नानी तेरी और ज्यादा नहीं चलेगी मनमानी तरेी हम भी अब सौ सिर उड़ाएंगे एलान से    कौन रुख़सत हुआ है हिन्दुस्तान से    लहू के आंसू गिरने लगे आसमान से कैसे सब्र करें इतने वीरों को खोया है धरती तो क्या आसमान तक रोया है देखें तो तुमने बारूद कितना बोया है चलो आरपार हो जाए पाकिस्तान से    कौन रुख़सत हुआ है हिन्दुस्तान से    लहू के आंसू गिरने लगे आसमान से होली हो, वह ईद हो चाहे हो दीवाली तुम बिन लगती हर खुशी अब काली हर खुशी मानो जैसे द रही हो गाली

कब तक सहमे रहोगे ललकारों से?

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 कब तक सहमे रहोगे ललकारों से? अरशद रसूल यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई देश का हक़ था अदा कर गया कोई बिटिया के पीले हाथ कौन करेगा शहनाइयों का काम अब मौन करेगा दायित्वों का निर्वहन कौन करेगा जान पर खेलकर गुजर गया कोई यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई देश का हक़ था अदा कर गया कोई अंधेरा कितना कर दिया इक फायर ने बुढ़ापे की लाठी छीनी उस कायर ने मरा नहीं, अमरत्व पाया है इक नाहर ने देश का कर्ज यूं अदा कर गया कोई यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई देश का हक़ था अदा कर गया कोई करुण क्रंदन बनी घर की किलकारी कोई दहाड़े, कोई चूड़ी तोड़े बेचारी पापा अब न आएंगे चीखे राज दुलारी ज़िंदगी के कर्ज अदा कर गया कोई यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई देश का हक़ था अदा कर गया कोई बिंदिया-चूनर रोएंगे और सिंदूर रोएगा हर खुशी रोएगी, हर शुभ दस्तूर रोएगा बूढ़ी आंखें चुप हैं, दिल भरपूर रोएगा हर आंख को आंसुओं से भर गया कोई यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई देश का हक़ था अदा कर गया कोई दुश्मन का दुस्साहस कितना तगड़ा है कितनी ही मांगों का सिंदूर उजड़ा है मातम ही मातम हर ओर उमड़ा है यूं भ