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Showing posts from May, 2018

पाश की 5 कविताएं

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पाश की 5 कविताएं भगत सिंह को आदर्श मानने वाले अवतार सिंह पाश को भगत सिंह के ही शहादत के दिन 23 मार्च 1988 को खालिस्‍तानियों ने मार दिया था।  धार्मिक कट्टरपंथ और सरकारी आतंकवाद दोनों के साथ एक ही समय लड़ने वाले पाश का वही सपना था जो भगत सिंह का था। कविताओं के लिए ही पाश को 1970 में इंदिरा गांधी सरकार ने दो साल के लिए जेल में डाला था। यूँ तो उनकी हर कविता बार-बार पढ़ने लायक है, पर यहां 5 कविताएं दे रहे हैं...       1. सपने सपने हर किसी को नहीं आते बेजान बारूद के कणों में सोयी आग को सपने नहीं आते बदी के लिए उठी हुई हथेली पर आये पसीने को सपने नहीं आते शैल्फ़ों में पड़े इतिहास के ग्रन्थों को सपने नहीं आते सपनों के लिए लाजिमी है सहनशील दिलों का होना सपनों के लिए नींद की नज़र होनी लाजिमी है सपने इसीलिए सभी को नहीं आते ____________     2. सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती ग़द्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती बैठे-सोए पकड़े जाना – बुरा तो है सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है

मैं आश्चर्य से भर जाता हूँः टैगोर

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मैं आश्चर्य से भर जाता हूँः टैगोर 7 मई को बांग्ला भाषा के महान कवि रवींद्र नाथ टैगोर की 157वीं जयंती है। इस मौके पर उन्हीं के एक लेख का हिन्दी अनुवाद पेश किया जा रहा है... आखिरकार मैं रूस में हूँ! मैं जिधर भी नजर दौड़ाता हूँ, आश्चर्य से भर जाता हूँ। किसी भी दूसरे देश में ऐसी स्थिति नहीं है...ऊपर से नीचे तक वे हर किसी को जगा रहे हैं...यह क्रान्ति लम्बे समय से रूस की दहलीज पर खड़ी अन्दर आने का इन्तजार कर रही थी। लम्बे समय से तैयारियाँ चल रही थींय इसके स्वागत के लिए रूस के अनगिनत ज्ञात और अज्ञात लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी और असहनीय यंत्रणाओं को भोगा।     क्रान्ति का ध्येय व्यापक है, परन्तु शुरुआत में यह दुनिया के कुछ निश्चित हिस्सों में घटित होती है। बिल्कुल वैसे ही जैसे, पूरे शरीर के रक्त के संक्रमित होते हुए भी, कमजोर जगहों पर चमड़ी लाल हो जाती है और छाले फूट पड़ते हैं। यह रूस ही था, जहाँ की गरीब और बेसहारा जनता अमीरों और ताकतवर लोगों के हाथों इस कदर जुल्म सह रही थी जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। इसलिए, यह रूस ही है, जहाँ दो पक्षों के बीच की इस अत्यधिक गैर-बराबरी एक रैडिकल सम