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Showing posts from 2018

मसखरा

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मसखरा... ✍ कविता   कृष्णापल्ली मसखरा सिंहासन पर बैठा तरह-तरह के करतब दिखाता है दरबारी हँसते हैं तालियाँ पीट-पीटकर और डरे हुए भद्र नागरिक उनका साथ देते हैं। वे जानते हैं, मसखरा एक हत्यारा है और दरबार में ख़ून के चहबच्चों के ऊपर बिछी हुई है लाल कालीन। मसखरे का सबसे प्रिय शगल है सड़कों पर युगपुरुष बनकर निकलने का स्वांग रचना विशाल भव्य मंचों से अच्छे दिनों की घोषणा करना जिन्हें सुनकर सम्मोहित भीड़ नारे लगाने लगती है सदगृहस्थ भले लोग डर जाते हैं सयाने अपनी हिफ़ाज़त की जुगत भिड़ाने लगते हैं और विवेकवान लोग चिन्तापूर्वक आने वाले दिनों की तबाहियों के बारे में सोचने लगते हैं। सदियों पहले जो बर्बर हमलावर बनकर आये थे वे अतिथि बनकर आ रहे हैं मसखरे ने ऐसा जादू चलाया है। मसखरा अपने मामूली से महान बनने के अगणित संस्मरण सुनाता है वह चाँद को तिलस्मी रस्सी फेंककर धरती पर खींच लाने के दावे करता है। मसखरा शब्दों से खेलता है और अलंकार-वैचित्र्य की झड़ी लगाता है। शब्द हों या परिधान, या लूट और दमन के विधान या सामूहिक नरसंहार रचने के लिए विकसित किया गया संकेत विज्ञान मसखरा सब

नौनिहालों को काल से बचाएगी रोटा वैक्सीन

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नौनिहालों को काल से बचाएगी रोटा वैक्सीन अच्छी खबर यह है कि नवजातों को असमय काल से बचाने के लिए रोटा वायरस वैक्सीन शुरू हो चुकी है। यह भारत सरीखे विकासशील देश के लिए गौरव की बात है। उत्तर प्रदेश 11वां राज्य है, जहां इस वैक्सीन को शुरू किया गया है। भारत में सबसे पहले यह वैक्सीन नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में 2016 में ओडिशा में शुरू की गई थी। उसके बाद इसे हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असम, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा और झारखंड में शुरू किया गया। बेहद खुशी का मुकाम है कि नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में रोटा वैक्सीन शामिल की जा रही है। प्रत्येक बच्चे को क्रमशः 6, 10, 14 सप्ताह की उम्र पर रोटा वैक्सीन की पांच बूंदे पिलाई जानी हैं। आखिरी खुराक अधिकतम 32 सप्ताह की उम्र तक दी जा सकती है।      देश में मई 2018 तक 2.1 करोड़ से अधिक रोटा वायरस वैक्सीन बच्चों को दी जा चुकी है। उम्मीद जताई जा रही है कि रोटा वायरस वैक्सीन से शुरूआती दौर में हर साल डायरिया से 57 लाख नवजात शिशुओं का बचाव किया जा सकेगा। आकड़ों के मुताबिक 2013 में रोटा वायरस से होने वाले डायरिया की चपेट में आकर लगभग

बाढ़ पीड़ितों की मदद का बीड़ा उठाया

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बाढ़ पीड़ितों की मदद का बीड़ा उठाया शिक्षित युवा वर्ग की बैठक में टीम का गठन किया गया जल्द ही बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए रवाना होंगे कार्यकर्ता बदायूं। शिक्षित युवा वर्ग ने बाढ़ पीड़ितों की मदद का बीड़ा उठाया है। तय किया गया कि खाने और रोजमर्रा की चीजों के पैकेट बनाकर बाढ़ग्रस्त इलाकों में बांटे जाएंगे। डाॅक्टरों की देखरेख में दवाओं का वितरण भी किया जाएगा।    घंटाघर स्थित कार्यालय पर बैठक की अध्यक्षता करते हुए संरक्षक अरशद रसूल ने कहा कि आपदा पीड़ितों की मदद करना हमारा फर्ज है। इसलिए हमें पहले अपने जिले में सहसवान के बाढ़ पीड़ितों की मदद को आगे आना चाहिए। नितिन गुप्ता ने कहा कि आटा, दाल, चावल, सब्जी, तेल, मसाले, चीनी-पत्ती, दवाई के साथ पन्नी आदि की व्यवस्था की जा रही है, ताकि बाढ़ पीड़ितों की मदद की जा सके। महासचिव शीराज अल्वी ने कहा कि संगठन पूरी पारदर्शिता और स्वच्छ भावना से काम कर रहा है। इसलिए किसी से भी नकद रुपये नहीं लिये जाएंगे। मदद करने के इच्छुक लोग सोमवार शाम तक सामान दे सकते हैं।    जिलाध्यक्ष सरफराज अब्बासी और सालिम रियाज के नेतृत्व में टीम का गठन किया गया। युवाओं की यह टीम सं

शकेब जलाली, दुश्वारियों से जन्मा शायर

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शकेब जलाली, दुश्वारियों से जन्मा शायर 1934 में जन्मे शायर शकेब जलाली को यहां कम लोग ही जानते हैं। वह हिन्दुस्तान में पैदा हुए उर्दू शायर थे। उनका असली नाम सैयद हसन रिजवी था। उनके पूर्वज हिन्दुस्तान के अलीगढ़ के पास जलाली नाम के छोटे से कस्बे में रहते थे। महज 10 साल की उम्र में उनकी मां सड़क हादसे में चल बसी थीं। इसके बाद उनके पिता अपना दिमागी संतुलन खो बैठे और कुछ वक्त बाद वह भी चल बसे। जलाली ने मैट्रिक बदायूं से पास किया था। बाद में अपनी बहनों के साथ रावलपिंडी, पाकिस्तान में चले गए। पाकिस्तान पहुंचकर बी.ए. पास किया और शादी कर ली। इस दौरान तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ा। रोजी-रोटी के लिए उन्होंने एक अखबार में नौकरी शुरू कर दी। जलाली ने कई साहित्यिक पत्रिकाओं में काम किया और फिर लाहौर चले गए। उन्होंने सादगी के साथ उर्दू शायरी की और नज़्म, रुबाई, कतआत में भी हाथ आजमाया। सन 1966 में किसी मनोरोग की वजह से रेलवे पटरी पर आत्महत्या की कर ली। दुश्ववारियों ने उंगली पकड़कर दुनिया को एक नए रंग में देखने वाली नजर बख्शी। शकेब ने इस नजर को गजलों की शक्ल दी...पेश है खिराजे अकीदत बतौर कुछ कलाम

पाश की 5 कविताएं

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पाश की 5 कविताएं भगत सिंह को आदर्श मानने वाले अवतार सिंह पाश को भगत सिंह के ही शहादत के दिन 23 मार्च 1988 को खालिस्‍तानियों ने मार दिया था।  धार्मिक कट्टरपंथ और सरकारी आतंकवाद दोनों के साथ एक ही समय लड़ने वाले पाश का वही सपना था जो भगत सिंह का था। कविताओं के लिए ही पाश को 1970 में इंदिरा गांधी सरकार ने दो साल के लिए जेल में डाला था। यूँ तो उनकी हर कविता बार-बार पढ़ने लायक है, पर यहां 5 कविताएं दे रहे हैं...       1. सपने सपने हर किसी को नहीं आते बेजान बारूद के कणों में सोयी आग को सपने नहीं आते बदी के लिए उठी हुई हथेली पर आये पसीने को सपने नहीं आते शैल्फ़ों में पड़े इतिहास के ग्रन्थों को सपने नहीं आते सपनों के लिए लाजिमी है सहनशील दिलों का होना सपनों के लिए नींद की नज़र होनी लाजिमी है सपने इसीलिए सभी को नहीं आते ____________     2. सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती ग़द्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती बैठे-सोए पकड़े जाना – बुरा तो है सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है

मैं आश्चर्य से भर जाता हूँः टैगोर

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मैं आश्चर्य से भर जाता हूँः टैगोर 7 मई को बांग्ला भाषा के महान कवि रवींद्र नाथ टैगोर की 157वीं जयंती है। इस मौके पर उन्हीं के एक लेख का हिन्दी अनुवाद पेश किया जा रहा है... आखिरकार मैं रूस में हूँ! मैं जिधर भी नजर दौड़ाता हूँ, आश्चर्य से भर जाता हूँ। किसी भी दूसरे देश में ऐसी स्थिति नहीं है...ऊपर से नीचे तक वे हर किसी को जगा रहे हैं...यह क्रान्ति लम्बे समय से रूस की दहलीज पर खड़ी अन्दर आने का इन्तजार कर रही थी। लम्बे समय से तैयारियाँ चल रही थींय इसके स्वागत के लिए रूस के अनगिनत ज्ञात और अज्ञात लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी और असहनीय यंत्रणाओं को भोगा।     क्रान्ति का ध्येय व्यापक है, परन्तु शुरुआत में यह दुनिया के कुछ निश्चित हिस्सों में घटित होती है। बिल्कुल वैसे ही जैसे, पूरे शरीर के रक्त के संक्रमित होते हुए भी, कमजोर जगहों पर चमड़ी लाल हो जाती है और छाले फूट पड़ते हैं। यह रूस ही था, जहाँ की गरीब और बेसहारा जनता अमीरों और ताकतवर लोगों के हाथों इस कदर जुल्म सह रही थी जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। इसलिए, यह रूस ही है, जहाँ दो पक्षों के बीच की इस अत्यधिक गैर-बराबरी एक रैडिकल सम

मीडिया पर हावी होता बाज़ारवाद

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मीडिया पर हावी होता  बाज़ारवाद एक विषय पर अलग-अलग बातें करके मीडिया व्यापारी दो वर्गों को खुश करने में पूरी तरह कामयाब हो रहे हैं। हमें ऐसे दोगले चरित्र वाले मीडिया संस्थानों को बेनकाब कर सामाजिक बहिष्कार करना ही होगा। हिन्दुस्तानी मीडिया हमेशा से पीडि़त, वंचित, शोषित, उपेक्षित वर्ग की आवाज उठाता रहा है। मीडिया की ईमानदारी और मिशन मोड में काम करने के अंदाज ने हमेशा सभी को अपनी तरफ आकर्षित किया है। मीडिया के लिए आम आदमी के मन में सम्मान और आकर्षण की भावना रही है। शायद इसी वजह से भारतीय लोकतंत्र में प्रेस/मीडिया को चौथे स्तंभ का दर्जा दिया गया है। मीडिया ने भी हर दौर में एक सजग प्रहरी के रूप में अपने कर्तव्य का पालन किया है। समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार से मीडिया पर्दा उठाता रहा है।    आज भी मीडिया के हस्तक्षेप से तमाम लोगों को न्याय मिलता है। अपना धर्म निभाने में न जाने कितने ही मीडिया कर्मियों ने परेशानियों का सामना किया। यहां तक कि मौत का सामना भी करना पड़ा, फिर भी उन्होंने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ा। सलाम है ऐसे कर्तव्य परायण मीडिया कर्मियों के जज्बे को।    मुझे कहने दी

सबका साथ, सबका विकास

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सबका साथ, सबका विकास भाजपा सबका साथ, सबका विकास कर रही है। अब देखो, तय अवधि रोजगार की अधिसूचना चुपके से सभी सेक्टर में जारी और लागू कर दी। मौजूदा और आने वाली पीढ़ी को ठेकेदारी प्रथा में धकेलने का काम है। रखो या निकालो, कोई आवाज नहीं उठा सकता। इस तरह निजीकरण हर सेक्टर में फलेगा-फूलेगा। साथ ही आरक्षण की व्यवस्था भी समाप्त।     इससे जो सवर्ण खुश हो सकते हैं, उनके लिए भी ये खबर है कि महाराज आपके बच्चे भी कोई पक्की नौकरी नहीं पाएंगे। जहां-तहां कभी चार महीने की तो कभी तीन महीने की नौकरी मिलेगी। कितने की मिलेगी, क्या सुविधा मिलेगी, ये पूछना भी मत। ऐसा इसलिए कि जिनकी पक्की नौकरी है वे ही पैदल हो रहे हैं।    मार्च 18 की समाप्ति पर बरेली में बिजली विभाग के चीफ इंजीनियर तक को प्रदर्शन में आना पड़ा क्योंकि योगी सरकार इस विभाग को निजी हाथों में सौंपने जा रही है। ये भी जान लीजिए कि इसका समर्थन किसने किया। जवाब है-भारतीय मजदूर संघ ने। ये विंग आरएसएस की है।     15 फरवरी को हुई मीटिंग में बीएमएस ने समर्थन दिया। श्रमिकों में भ्रम पैदा करने को अब इसका खोखला विरोध भी जता रही है। इस संघ की सहय

विकास: कल्पनाओं के संसार में

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विकास: कल्पनाओं के संसार में स्मार्ट सिटी : जैसे ही घर से बहार निकला सड़क अपने आप चल पड़ी, फिर मैंने जैसे ही चिंगम फेंकी डस्टबिन अपने आप आगे आ गया..पार्क में गाय डाईपर बाँध के घूम घूम रही थी। सबकुछ एक सपना सा लग रहा था अचानक सड़क धड़धड़ाने लगी देखा तो बापू ने लात मार के खाट पे से नीचे गिरा दिया! सांसद का गोद लिया गाँव : सड़क चलते चलते किसी गाँव में पहुँची तो क्या देखता हूँ रोबोट खेत जोत 5रहे थे किसान खेत के बीच में बने AC ऑफिस में बैठे कॉफ़ी की चुस्की लेते रोबोट को कंट्रोल कर रहे थे..सबके घर एयरकंडिशन महल बन चुके थे, सड़क के एक तरफ दूध का तालाब तो दूसरी तरफ मक्खन के टीले! 2 करोड़ जॉब्स/साल : आजकल मेरे जैसे कामचोर नौजवान छुपते घूम रहे हैं क्योंकि सरकार पकड़ पकड़ कर सरकारी नौकरियों पे भर्ती कर रही है..एक बार काला कम्बल मेरे पे डाल के ले गए और तहसीलदार भर्ती करने लगे, मुश्किल से जान बचा के भागा फिर सरकार ने बेरोजगार विदेशों से आयात करने शुरू किये। 1 सिर = 10 सिर : बेरोजगारों की तरह सुबह 11 बजे उठा नजर अख़बार पे पड़ी हैडिंग देखते ही सीना 112 इंच का हो गया मुझे अपनी आँखो

विकास नहीं जज़्बात भुनाने का नाम है सियासत

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विकास नहीं जज़्बात भुनाने का नाम है सियासत नेता जी- अबे गुड्डू! एक 7-8 मिनट का भाषण तो लिख दे, मुस्लिम बस्ती में देना है। भाषण ऐसा हो कि सब के सब वोट हमें ही मिलें।    गुड्डू- जी सरकार... और आधे घंटे बाद एक पर्चा लेकर हाज़िर हुआ। नेता जी ने पढ़ा तो बोले अबे इत्ता सा मैटर! यह तो 2 मिनट में ही खत्म हो जाएगा।    गुड्डू- सरकार यह भाषण आपको ठीक 6:18 बजे शुरू करना है और 6:20 पर अज़ान होगी, तब खामोश हो जाना है। अज़ान खत्म हो जाए तो कहना है, देखो भाइयों अभी अज़ान में कहा गया है कि आओ कामयाबी की तरफ, तो जाओ कामयाबी की तरफ। नमाज़ पढ़ो तो कामयाब हो जाओगे। मुझ गुनाहगार के भाषण में क्या रखा है भाइयों ? जाते हुए लोगों में से एक नोजवान को अपनी टोपी भी उतार कर पहना देना, यह कहते हुए कि मालिक के सामने नंगे सर नहीं जाते बेटा...     नेता ने गुड्डू के चरणों मे लोट लगा दी और उसका माथा चूम लिया और बोले अगर तू मेरी तरह किसी नेता का लौंडा होता तो आज किसी सूबे का मुख्यमंत्री होता, क्या खोपड़ी है बे तेरी!     नेता जी ने ठीक वैसा ही भाषण दिया और सारे वोट नेता जी की तरफ। रिजल्ट यह रहा कि अब गुड्डू मंत्रीजी

किसान को खेती बंद कर देनी चाहिए

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किसान को खेती बंद कर देनी चाहिए मेरा विचार तो यही है कि अब किसानों को अपना व्यवसाय बदल देना चाहिए। यानी उन्हें अब खेती करना बंद कर देना चाहिए। सिर्फ अपने परिवार की जरूरत के लायक फसल उपजा कर बाकी जमीन को खाली छोड़ दें। आखिर किसान भी सामाजिक प्राणी हैं, उनकी भी जरूरतें हैं। देखा गया है कि तमाम लोग ऐसे हैं जो अपने बच्चों को 2 लाख रुपये तक की मोटर साइकिल और इसी तरह का महंगा मोबाइल लेकर देने में एक बार भी नहीं कहते कि यह महंगा है। हैरत होती है कि यही लोग किसान हितों की बातों पर बहस करते नजर आते हैं।    माॅल्स में अंधाधुंध रकम खर्च करने वाले गेंहूूं की कीमत बढ़ने से डर रहे हैं। तीन सौ रुपये प्रति किलो के भाव से मल्टीप्लेक्स के इंटरवल में पॉपकॉर्न खरीदने वाले मक्का के भाव किसान को तीन रुपये प्रति किलो से अधिक न मिलने की वकालत कर चुके हैं। किसी ने एक बार भी यह नहीं कहा कि मैगी, पास्ता, कॉर्नफ्लैक्स के दाम बहुत ज्यादा हैं। सबको किसान का कर्ज दिख रहा है। महसूस हो रहा है कि कर्ज माफी की मांग करके किसान बहुत नाजायज बात कर रहा है।    यह जानना जरूरी है कि एडवांस होने मुखौटा पहनने वालों के कारण क

औरत को जो समझता था मर्दों का खिलौना

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औरत को जो समझता था मर्दों का खिलौना आमतौर पर महिलाओं को कमज़ोर माना जाता है, लेकिन हक़ीक़त इससे अलग है। ऐसा कोई भी मैदान नहीं है जहां महिलाओं ने अपने जौहर न दिखाए हों। महिलाओं ने अपने हक़ की लड़ाई बहुत बेबाकी से लड़ी है और दिखा दिया कि वह किसी से कम नहीं हैं। महिला दिवस पर हम इस वर्ग के जज़्बे को सलाम करते हैं। यहां पेश हैं महिलाओं से जुड़े कुछ शेर- औरत अपना आप बचाए तब भी मुजरिम होती है औरत अपना आप गँवाए तब भी मुजरिम होती है - नीलमा सरवर ----- कौन बदन से आगे देखे औरत को सबकी आँखें गिरवी हैं इस नगरी में - हमीदा शाहीन ----- औरत को चाहिए कि अदालत का रुख़ करे जब आदमी को सिर्फ़ ख़ुदा का ख़याल हो - दिलावर फ़िगार ----- शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास रौनके़ं जितनी यहां हैं औरतों के दम से हैं - मुनीर नियाज़ी ----- अभी रौशन हुआ जाता है रास्ता वो देखो एक औरत आ रही है - शकील जमाली ----- औरतें काम पर निकली थीं बदन घर रख कर जिस्म ख़ाली जो नज़र आए तो मर्द आ बैठे - फ़रहत एहसास ----- औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ एक सच के तहफ़्फ़ुज़ के लिए सबसे लड़ी हूँ - फ़रहत ज़ाह

मैं नास्तिक क्यों हूँ?

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शहीद भगत सिंह का लेख… मैं नास्तिक क्यों हूँ? (भगतसिह ने जेल में यह लेख 5-6 अक्टूबर, 1930 को लिखा था। यह पहली बार लाहौर से प्रकाशित अंग्रेज़ी पत्र ‘द पीपुल’ के 27 सितम्बर 1931 के अंक में प्रकाशित हुआ था। इस महत्त्वपूर्ण लेख में भगतसिह ने सृष्टि के विकास और गति की भौतिकवादी समझ पेश करते हुए उसके पीछे किसी मानवेतर ईश्वरीय सत्ता के अस्तित्व की परिकल्पना को अत्यन्त तार्किक ढंग से निराधार सिद्ध किया है।) ----------------- एक नया सवाल उठ खड़ा हुआ है। क्या मैं अहम्मन्यता के कारण सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वज्ञ ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता हूँ? मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि मुझे कभी ऐसे सवाल का सामना करना पड़ेगा। लेकिन कुछ मित्रों से हुई बातचीत में मुझे यह संकेत मिला कि मेरे कुछ दोस्त – अगर उन्हें दोस्त मान कर उन पर मैं बहुत ज़्यादा अधिकार नहीं जता रहा हूँ तो – मेरे साथ के अपने थोड़े से सम्पर्क से इस नतीजे पर पहुँचना चाहते हैं कि मैं ईश्वर के अस्तित्व को नकार कर बड़ी ज़्यादती कर रहा हूँ और यह कि मुझमें कुछ अहम्मन्यता है जिसने मुझे इस अविश्वास के लिए प्रेरित किया है।      बहरहा

नीरव मोदी! परेशान मत होना

नीरव मोदी! परेशान मत होना प्रिय नीरव मोदी! जहाँ हो खुश रहना, खूब तरक्की करना, और कर्जे की  चिंता मत करना, वो तो बैंक वाले हम लोगो से पच्चास-पच्चास, सौ-सौ रूपये करके वसूल ही लेंगे.. अभी  माल्या साहब का कर्जा चुका रहे है फिर तुम्हारा भी  चुका देंगे, हम  लोगो को तो आदत है इस सब की....कभी कभी तो लगता है कि हम लोग कमाते ही इसलिए है कि आप जैसे बडे बडे लोगों के बैंको का कर्ज भर सके, हम लोगों का जन्म भी  शायद इसलिये ही हुआ.. तुम बिल्कुल परेशान मत होना, तुम्हारे गबन का एक एक पैसा सूद के  साथ बैक को हम देशवासी  वापिस करके देशभक्त कहलाएगे ..          जय हिंद जय भारत

लुटेरी साबित हो सकती है मीठी आवाज़

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लुटेरी साबित हो सकती है मीठी आवाज़ Share for Care... कल शाम एक लड़की का फोन आया था। बोली-सर, मैं जॉब के लिए एप्लाई कर रही थी। गलती से आपका नम्बर डाल दिया है। क्योकि मेरे और आपके मोबाइल नंबर में मामूली सा फर्क है। आपके पास थोड़ी देर में एक ओटीपी आएगा... प्लीज बता दीजिए सर, मेरी जिन्दगी का सवाल है। बात बिल्कुल जेनुइन लग रही थी, मैनें इनबॉक्स चेक किया, दो मैसेज आये थे। एक पर ओटीपी था, दूसरा एक मोबाइल से आया मैसेज। लिखा था, डियर सर, आपके पास जो ओटीपी आया है, प्लीज इस नंबर पर भेज दीजिये। thanks a lot in advance… मैसेज देख ही रहा था कि फोन दोबारा आया। वही सुमधुर आवाज। बस नंबर दूसरा था। सर, आपने देखा होगा अब तक ओटीपी आ गया होगा या तो बता दो या फारवर्ड कर दो उस नंबर पर, सर प्लीज... मैंने कहा कि बता दूंगा, पर आप पहले एक काम करो... हां सर बोलिए... जो नंबर आपने डाला है, वह मेरे नम्बर से मिलता-जुलता है, तभी आपसे यह गलती हुई है न ? हां सर... उसके लहजे में उतावलापन साफ महसूस हो रहा था। मैंने कहा- ओके, आप उसी नम्बर से मुझे कॉल करो, ताकि मैं वेरीफाई कर सकूं की आप सही हो। वो क्या है न सर,