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Showing posts from January, 2020

राष्ट्र प्रेम के अवसर

राष्ट्र प्रेम के अवसर आधुनिकता की चाशनी में लिपटा परिवेश, भौतिकवादी संस्कृति में डूबा देश का जनमानस, पागलपन की हद तक पश्चिमी सभ्यता की नकल आदि। अगर इस समय हम समाज की स्थिति को देखें तो पूरी तरह से बाजारवाद हावी है। न कोई विचार, न कोई चिंतन और न ही मैं से हम होने का सकारात्मक प्रयास। मौजूदा दौर में देश का जनमानस राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों की जानबूझकर अनदेखी कर रहा है। हालांकि कथित रूप से राष्ट्रवाद के दावे तो बहुत किए जा रहे हैं। यदि समाज के किसी भी व्यक्ति से राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों की बात की जाए तो वह सिर्फ इतना जरूर कहता है- “समय आने पर मैं देश के लिए जान भी दे सकता हूं।” अब सवाल यह है कि देश से निष्ठा और प्यार जाहिर करने के लिए क्या जान देना ही जरूरी है? क्या हम देश के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए देश पर बुरा वक्त आने का इंतजार करें? क्या रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसे काम नहीं है, जिन्हें करके हम देश के प्रति कर्तव्य और प्रेम को प्रदर्शित कर सकें? हकीकत तो यह है कि देश या समाज के प्रति प्यार जताने के लिए खास मौकों की जरूरत नहीं होती। जरूरत है तो सिर्फ सच्चे मन

ताजमहल ने शहरों को खूब लुभाया

ताजमहल ने शहरों को खूब लुभाया सभी जानते हैं कि बादशाह शाहजहां अपनी बेगम मुमताज़ से बहुत प्यार करते थे। उन्होंने अपनी बेगम की याद में संगमरमर की इमारत तामीर कराई थी, जिसको हम ताजमहल के नाम से जानते हैं। यह ताज दुनिया के सात अजूबों में से एक है। संगमरमर की यह इमारत बेहद खूबसूरत है। इसकी खूबसूरती ने शायरों का ध्यान भी अपनी तरफ खींचा। शायद इसी वजह से दुनिया भर के नामचीन शायरों ने भी ताजमहल को अपना उनवान बनाकर शायरी की है। यहां पेश है ताजमहल पर कुछ शायरों की गजलें और शेर- इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है - शकील बदायूंनी है किनारे ये जमुना के इक शाहकार देखना चाँदनी में तुम इस की बहार याद-ए-मुमताज़़ में ये बनाया गया संग-ए-मरमर से इस को तराशा गया शाहजहाँ ने बनाया बड़े शौक़ से बरसों इस को सजाया बड़े शौक़ से हाँ ये भारत के महल्लात का ताज है सब के दिल पे इसी का सदा राज है - अमजद हुसैन हाफ़िज़ अल्लाह मैं यह ताज महल देख रहा हूँ या पहलू-ए-जमुना में कँवल देख रहा हूँ ये शाम की ज़ुल्फ़ों में सिमटते हुए अनवार फ़िरदौस-ए-नज़र ताजमहल के दर-ओ-दीवार अफ़्लाक से

गाय को चाहिए सभी का आश्रय

गाय को चाहिए सभी का आश्रय गाय की रक्षा के मुद्दे पर आए दिन अराजकता फैल रही है। समाज के कुछ कथित गौ सेवकों को गाय की रक्षा का काम मिल गया है। यह बात दीगर है कि उनकी नजर उन गायों पर नहीं जाती है जो रोजाना पॉलीथीन खाकर दम तोड़ती हैं। हजारों गायों को आश्रय तक उपलब्ध नहीं है। रोजाना सड़कों पर विचरण करना ही उनके भाग्य में लिखा है। गाय की रक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। भारतीय समाज में इसको यूं ही नहीं उच्च स्थान मिला है। बेशक समाज के लिए गाय एक उपयोगी पशु है। मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहना जरूरी हो गया है कि गाय पर सियासत बंद होनी चाहिए। सियासी और मजहबी चश्मे को उतारकर मौजूदा दौर में जरूरत इस बात की है कि हर हाल में गाय की रक्षा होनी ही चाहिए। हिन्दू धर्म में ही नहीं बल्कि इस्लाम में भी गाय के महत्व का बयान किया गया है। कुरआन में तो गाय और उसके दूध खूब तारीफ की गई है। इस्लामिक ऐतबार से भी गाय की हिफाजत बहुत जरूरी है।    गाय पर राजनीति से बेहतर है कि सरकार एक सुझाव पर अमल कर ले। वह यह कि सरकार की तरफ से यह ऐलान कर दिया जाए कि कि कल से गाय का गोबर 5 रुपये प्रति किलो

शकेब जलाली...दुश्वारियों से जन्मा शायर

शकेब जलाली...दुश्वारियों से जन्मा शायर 1934 में जन्मे शायर शकेब जलाली को यहां कम लोग ही जानते हैं। वह हिन्दुस्तान में पैदा हुए उर्दू शायर थे। उनका असली नाम सैयद हसन रिजवी था। उनके पूर्वज हिन्दुस्तान के अलीगढ़ के पास जलाली नाम के छोटे से कस्बे में रहते थे। महज 10 साल की उम्र में उनकी मां सड़क हादसे में चल बसी थीं। इसके बाद उनके पिता अपना दिमागी संतुलन खो बैठे और कुछ वक्त बाद वह भी चल बसे। जलाली ने मैट्रिक बदायूं से पास किया था। बाद में अपनी बहनों के साथ रावलपिंडी, पाकिस्तान में चले गए। पाकिस्तान पहुंचकर बी.ए. पास किया और शादी कर ली। इस दौरान तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ा। रोजी-रोटी के लिए उन्होंने एक अखबार में नौकरी शुरू कर दी। जलाली ने कई साहित्यिक पत्रिकाओं में काम किया और फिर लाहौर चले गए। उन्होंने सादगी के साथ उर्दू शायरी की और नज़्म, रुबाई, कतआत में भी हाथ आजमाया। सन 1966 में किसी मनोरोग की वजह से रेलवे पटरी पर आत्महत्या की कर ली। दुश्ववारियों ने उंगली पकड़कर दुनिया को एक नए रंग में देखने वाली नजर बख्शी। शकेब ने इस नजर को गजलों की शक्ल दी…पेश है खिराजे अकीदत बतौर कुछ कलाम