राष्ट्र प्रेम के अवसर
राष्ट्र प्रेम के अवसर आधुनिकता की चाशनी में लिपटा परिवेश, भौतिकवादी संस्कृति में डूबा देश का जनमानस, पागलपन की हद तक पश्चिमी सभ्यता की नकल आदि। अगर इस समय हम समाज की स्थिति को देखें तो पूरी तरह से बाजारवाद हावी है। न कोई विचार, न कोई चिंतन और न ही मैं से हम होने का सकारात्मक प्रयास। मौजूदा दौर में देश का जनमानस राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों की जानबूझकर अनदेखी कर रहा है। हालांकि कथित रूप से राष्ट्रवाद के दावे तो बहुत किए जा रहे हैं। यदि समाज के किसी भी व्यक्ति से राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों की बात की जाए तो वह सिर्फ इतना जरूर कहता है- “समय आने पर मैं देश के लिए जान भी दे सकता हूं।” अब सवाल यह है कि देश से निष्ठा और प्यार जाहिर करने के लिए क्या जान देना ही जरूरी है? क्या हम देश के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए देश पर बुरा वक्त आने का इंतजार करें? क्या रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसे काम नहीं है, जिन्हें करके हम देश के प्रति कर्तव्य और प्रेम को प्रदर्शित कर सकें? हकीकत तो यह है कि देश या समाज के प्रति प्यार जताने के लिए खास मौकों की जरूरत नहीं होती। जरूरत है तो सिर्फ सच्चे मन