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Showing posts from March, 2018

सबका साथ, सबका विकास

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सबका साथ, सबका विकास भाजपा सबका साथ, सबका विकास कर रही है। अब देखो, तय अवधि रोजगार की अधिसूचना चुपके से सभी सेक्टर में जारी और लागू कर दी। मौजूदा और आने वाली पीढ़ी को ठेकेदारी प्रथा में धकेलने का काम है। रखो या निकालो, कोई आवाज नहीं उठा सकता। इस तरह निजीकरण हर सेक्टर में फलेगा-फूलेगा। साथ ही आरक्षण की व्यवस्था भी समाप्त।     इससे जो सवर्ण खुश हो सकते हैं, उनके लिए भी ये खबर है कि महाराज आपके बच्चे भी कोई पक्की नौकरी नहीं पाएंगे। जहां-तहां कभी चार महीने की तो कभी तीन महीने की नौकरी मिलेगी। कितने की मिलेगी, क्या सुविधा मिलेगी, ये पूछना भी मत। ऐसा इसलिए कि जिनकी पक्की नौकरी है वे ही पैदल हो रहे हैं।    मार्च 18 की समाप्ति पर बरेली में बिजली विभाग के चीफ इंजीनियर तक को प्रदर्शन में आना पड़ा क्योंकि योगी सरकार इस विभाग को निजी हाथों में सौंपने जा रही है। ये भी जान लीजिए कि इसका समर्थन किसने किया। जवाब है-भारतीय मजदूर संघ ने। ये विंग आरएसएस की है।     15 फरवरी को हुई मीटिंग में बीएमएस ने समर्थन दिया। श्रमिकों में भ्रम पैदा करने को अब इसका खोखला विरोध भी जता रही है। इस संघ की सहय

विकास: कल्पनाओं के संसार में

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विकास: कल्पनाओं के संसार में स्मार्ट सिटी : जैसे ही घर से बहार निकला सड़क अपने आप चल पड़ी, फिर मैंने जैसे ही चिंगम फेंकी डस्टबिन अपने आप आगे आ गया..पार्क में गाय डाईपर बाँध के घूम घूम रही थी। सबकुछ एक सपना सा लग रहा था अचानक सड़क धड़धड़ाने लगी देखा तो बापू ने लात मार के खाट पे से नीचे गिरा दिया! सांसद का गोद लिया गाँव : सड़क चलते चलते किसी गाँव में पहुँची तो क्या देखता हूँ रोबोट खेत जोत 5रहे थे किसान खेत के बीच में बने AC ऑफिस में बैठे कॉफ़ी की चुस्की लेते रोबोट को कंट्रोल कर रहे थे..सबके घर एयरकंडिशन महल बन चुके थे, सड़क के एक तरफ दूध का तालाब तो दूसरी तरफ मक्खन के टीले! 2 करोड़ जॉब्स/साल : आजकल मेरे जैसे कामचोर नौजवान छुपते घूम रहे हैं क्योंकि सरकार पकड़ पकड़ कर सरकारी नौकरियों पे भर्ती कर रही है..एक बार काला कम्बल मेरे पे डाल के ले गए और तहसीलदार भर्ती करने लगे, मुश्किल से जान बचा के भागा फिर सरकार ने बेरोजगार विदेशों से आयात करने शुरू किये। 1 सिर = 10 सिर : बेरोजगारों की तरह सुबह 11 बजे उठा नजर अख़बार पे पड़ी हैडिंग देखते ही सीना 112 इंच का हो गया मुझे अपनी आँखो

विकास नहीं जज़्बात भुनाने का नाम है सियासत

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विकास नहीं जज़्बात भुनाने का नाम है सियासत नेता जी- अबे गुड्डू! एक 7-8 मिनट का भाषण तो लिख दे, मुस्लिम बस्ती में देना है। भाषण ऐसा हो कि सब के सब वोट हमें ही मिलें।    गुड्डू- जी सरकार... और आधे घंटे बाद एक पर्चा लेकर हाज़िर हुआ। नेता जी ने पढ़ा तो बोले अबे इत्ता सा मैटर! यह तो 2 मिनट में ही खत्म हो जाएगा।    गुड्डू- सरकार यह भाषण आपको ठीक 6:18 बजे शुरू करना है और 6:20 पर अज़ान होगी, तब खामोश हो जाना है। अज़ान खत्म हो जाए तो कहना है, देखो भाइयों अभी अज़ान में कहा गया है कि आओ कामयाबी की तरफ, तो जाओ कामयाबी की तरफ। नमाज़ पढ़ो तो कामयाब हो जाओगे। मुझ गुनाहगार के भाषण में क्या रखा है भाइयों ? जाते हुए लोगों में से एक नोजवान को अपनी टोपी भी उतार कर पहना देना, यह कहते हुए कि मालिक के सामने नंगे सर नहीं जाते बेटा...     नेता ने गुड्डू के चरणों मे लोट लगा दी और उसका माथा चूम लिया और बोले अगर तू मेरी तरह किसी नेता का लौंडा होता तो आज किसी सूबे का मुख्यमंत्री होता, क्या खोपड़ी है बे तेरी!     नेता जी ने ठीक वैसा ही भाषण दिया और सारे वोट नेता जी की तरफ। रिजल्ट यह रहा कि अब गुड्डू मंत्रीजी

किसान को खेती बंद कर देनी चाहिए

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किसान को खेती बंद कर देनी चाहिए मेरा विचार तो यही है कि अब किसानों को अपना व्यवसाय बदल देना चाहिए। यानी उन्हें अब खेती करना बंद कर देना चाहिए। सिर्फ अपने परिवार की जरूरत के लायक फसल उपजा कर बाकी जमीन को खाली छोड़ दें। आखिर किसान भी सामाजिक प्राणी हैं, उनकी भी जरूरतें हैं। देखा गया है कि तमाम लोग ऐसे हैं जो अपने बच्चों को 2 लाख रुपये तक की मोटर साइकिल और इसी तरह का महंगा मोबाइल लेकर देने में एक बार भी नहीं कहते कि यह महंगा है। हैरत होती है कि यही लोग किसान हितों की बातों पर बहस करते नजर आते हैं।    माॅल्स में अंधाधुंध रकम खर्च करने वाले गेंहूूं की कीमत बढ़ने से डर रहे हैं। तीन सौ रुपये प्रति किलो के भाव से मल्टीप्लेक्स के इंटरवल में पॉपकॉर्न खरीदने वाले मक्का के भाव किसान को तीन रुपये प्रति किलो से अधिक न मिलने की वकालत कर चुके हैं। किसी ने एक बार भी यह नहीं कहा कि मैगी, पास्ता, कॉर्नफ्लैक्स के दाम बहुत ज्यादा हैं। सबको किसान का कर्ज दिख रहा है। महसूस हो रहा है कि कर्ज माफी की मांग करके किसान बहुत नाजायज बात कर रहा है।    यह जानना जरूरी है कि एडवांस होने मुखौटा पहनने वालों के कारण क

औरत को जो समझता था मर्दों का खिलौना

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औरत को जो समझता था मर्दों का खिलौना आमतौर पर महिलाओं को कमज़ोर माना जाता है, लेकिन हक़ीक़त इससे अलग है। ऐसा कोई भी मैदान नहीं है जहां महिलाओं ने अपने जौहर न दिखाए हों। महिलाओं ने अपने हक़ की लड़ाई बहुत बेबाकी से लड़ी है और दिखा दिया कि वह किसी से कम नहीं हैं। महिला दिवस पर हम इस वर्ग के जज़्बे को सलाम करते हैं। यहां पेश हैं महिलाओं से जुड़े कुछ शेर- औरत अपना आप बचाए तब भी मुजरिम होती है औरत अपना आप गँवाए तब भी मुजरिम होती है - नीलमा सरवर ----- कौन बदन से आगे देखे औरत को सबकी आँखें गिरवी हैं इस नगरी में - हमीदा शाहीन ----- औरत को चाहिए कि अदालत का रुख़ करे जब आदमी को सिर्फ़ ख़ुदा का ख़याल हो - दिलावर फ़िगार ----- शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास रौनके़ं जितनी यहां हैं औरतों के दम से हैं - मुनीर नियाज़ी ----- अभी रौशन हुआ जाता है रास्ता वो देखो एक औरत आ रही है - शकील जमाली ----- औरतें काम पर निकली थीं बदन घर रख कर जिस्म ख़ाली जो नज़र आए तो मर्द आ बैठे - फ़रहत एहसास ----- औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ एक सच के तहफ़्फ़ुज़ के लिए सबसे लड़ी हूँ - फ़रहत ज़ाह

मैं नास्तिक क्यों हूँ?

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शहीद भगत सिंह का लेख… मैं नास्तिक क्यों हूँ? (भगतसिह ने जेल में यह लेख 5-6 अक्टूबर, 1930 को लिखा था। यह पहली बार लाहौर से प्रकाशित अंग्रेज़ी पत्र ‘द पीपुल’ के 27 सितम्बर 1931 के अंक में प्रकाशित हुआ था। इस महत्त्वपूर्ण लेख में भगतसिह ने सृष्टि के विकास और गति की भौतिकवादी समझ पेश करते हुए उसके पीछे किसी मानवेतर ईश्वरीय सत्ता के अस्तित्व की परिकल्पना को अत्यन्त तार्किक ढंग से निराधार सिद्ध किया है।) ----------------- एक नया सवाल उठ खड़ा हुआ है। क्या मैं अहम्मन्यता के कारण सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वज्ञ ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता हूँ? मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि मुझे कभी ऐसे सवाल का सामना करना पड़ेगा। लेकिन कुछ मित्रों से हुई बातचीत में मुझे यह संकेत मिला कि मेरे कुछ दोस्त – अगर उन्हें दोस्त मान कर उन पर मैं बहुत ज़्यादा अधिकार नहीं जता रहा हूँ तो – मेरे साथ के अपने थोड़े से सम्पर्क से इस नतीजे पर पहुँचना चाहते हैं कि मैं ईश्वर के अस्तित्व को नकार कर बड़ी ज़्यादती कर रहा हूँ और यह कि मुझमें कुछ अहम्मन्यता है जिसने मुझे इस अविश्वास के लिए प्रेरित किया है।      बहरहा

नीरव मोदी! परेशान मत होना

नीरव मोदी! परेशान मत होना प्रिय नीरव मोदी! जहाँ हो खुश रहना, खूब तरक्की करना, और कर्जे की  चिंता मत करना, वो तो बैंक वाले हम लोगो से पच्चास-पच्चास, सौ-सौ रूपये करके वसूल ही लेंगे.. अभी  माल्या साहब का कर्जा चुका रहे है फिर तुम्हारा भी  चुका देंगे, हम  लोगो को तो आदत है इस सब की....कभी कभी तो लगता है कि हम लोग कमाते ही इसलिए है कि आप जैसे बडे बडे लोगों के बैंको का कर्ज भर सके, हम लोगों का जन्म भी  शायद इसलिये ही हुआ.. तुम बिल्कुल परेशान मत होना, तुम्हारे गबन का एक एक पैसा सूद के  साथ बैक को हम देशवासी  वापिस करके देशभक्त कहलाएगे ..          जय हिंद जय भारत