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Showing posts from 2019

सिर्फ जय किसान बोलने से कुछ नहीं होगा

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सिर्फ जय किसान बोलने से कुछ नहीं होगा ------------------------------------------- फसल तैयार होने में 100-120 दिन लग जाते हैं। उस पर भी मौसम की तरफ से अनहोनी का डर। चार महीने कड़ी मेहनत के बाद भी अक्सर फसल के वाजिब दाम नहीं मिल पाते। लोग किसानों की बात खूब करते हैं। फिर भी हर साल दो लाख किसान असमय मर जाते हैं। ------------------------------------------- गली से आवाज आई , चावल ले लो...दाल ले लो...! रुकिए भइया! कैसे दे रहे रहे हो ? तीसरी मजिल से किसी बड़े घर की महिला की आवाज आई। वह आदमी अपनी साइकिल पर तीन बोरे चावल और हैंडिल पर दो थैलों में दाल लादे हुए खड़ा था। चावल 40 का एक किलो है और मसूर 70 रुपये की एक किलो है।     रुकिए मैं नीचे आती हूं...कहकर महिला नीचे आने लगी। वह साइकिल के साथ धूप में खड़ा रहा। वह कुछ देर बाद घर से बाहर आई। अरे भइया! तुम लोग भी न हमें खूब चूना लगाते हो , 40 रुपये किलो तो बहुत अच्छा चावल आता है और दाल भी महंगी है...सही भाव लगा लो।      बहनजी! इस से कम नहीं लगा पाऊंगा। आप जानती नहीं हैं कि चावल और दाल को पैदा होने में 100-120 दिन लगते हैं। एक कि

वोट खोलेगा आपकी तरक्की का रास्ता

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वोट खोलेगा आपकी तरक्की का रास्ता सियासी, मआशी और तालीमी मआमलात में दिलचस्पी जरूरी है। इसलिए चुनाव और मतदान हमारी जिंदगी का ही हिस्सा हैं। शरीफ लोगों की सियासत से दूरी अच्छी बात नहीं है। वोट से ही फिरकापरस्त ताकतों को शिकस्त दी जा सकती है… ------------- हिन्दुस्तान में मौकापरस्त नेताओं ने सियासत को एक घिनौनी चीज बना दिया है। चुनाव और मतदान को इतना रुसवा और बदनाम कर दिया है कि आम शरीफ लोग इससे नफरत तक करने लगे हैं। वोट के बारे में अच्छे लोगों की यह लापरवाही मुल्क और समाज के लिए बेहद नुकसानदेह है। इस उदासीनता से हिन्दुस्तानी समाज को भविष्य में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।    हर इंसान के लिए सियासी, मआशी और तालीमी मआमलात में दिलचस्पी जरूरी है। इस लिहाज से चुनाव और मतदान भी हमारी जिंदगी से अलग नहीं हैं। हकीकत यह भी है कि मौकापरस्तों के हाथों में पहुंचकर सियासत़ गंदगी का दलदल बन चुकी है। शायद यही वजह है कि शरीफ लोग इससे दूरी बनाने लगे हैं। इसको पाक-साफ करने का इकलौता रास्ता यही है कि समाज के बेहतर किरदार और बेहतर सोच रखने वाले लोग मैदाने सियासत में कदम रखें। ये लोग अपने पाक-साफ

फ़ैज़ान मदीने का...

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फ़ैज़ान मदीने का... हसरत है मिरे दिल की, अरमान मदीने का ऐ  काश  बनूं  में भी  मेहमान मदीने  का यह भी है ज़माने पर एहसान मदीने का मिलता है ज़माने को फैजान मदीने का पैग़म्बरे आज़म की हम पर जो इनायत है माना  है दो आलम ने एहसान मदीने का देते हैं पता मुझको जन्नत की बहारों का बागात  मदीने  के, मैदान  मदीने  का सरकारे दो आलम का मस्कान है मदीने में यूं  भी  तो  हुआ शैदा  इंसान  मदीने  का गुस्ताखे नबी तूने रिफअत ही कहां देखी? मेअयार  ज़रा  तू भी  पहचान मदीने का हसरत ही निकल जाए, तकदीर पे नाज़ा हो बन जाए अगर "अरशद" दरबान मदीने का

मजहबी डिबेट पर पाबंदी जरूरी

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मजहबी डिबेट पर पाबंदी जरूरी न्यूज़ चैनलों पर मज़हबी डिबेट पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए। मज़हबी बहस के लिए न्यूज़ चैनल के स्टूडियो मुनासिब जगह नहीं हैं। आए दिन यहां कुछ लोगों को बैठाकर इस्लामी शरीयत पर बहस होती है।     इसके बजाए शिक्षा, बेरोज़गारी, स्वास्थ जैसे मुद्दों पर बहस हो तो कुछ फायदा हो सकता है। कुछ फ़िरक़ापरस्त चैनल हिन्दू-मुस्लिम के बीच नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं। महसूस यह भी होता है कि उनका एजेंडा इस्लामी शरीयत पर हमला कर नफरत फैलाना है। कुछ कठमुल्लों को बुलाकर इस्लाम और शरीयत के खिलाफ बहस कराते हैं। यह कठमुल्ले कुछ पार्टियों की चापलूसी करते नजर आते हैं। मुस्लिम समुदाय में एक से बढ़कर एक आलिम, स्कालर मौजूद हैं। ऐसे लोग टीवी डिबेट में होने वाली बदतमीज़ियों की वजह से वहां जाना पसंद नहीं करते हैं। इसलिए न्यूज़ चैनल गुमनाम और नीम मुल्लाओं को पकड़-पकड़कर लाते हैं।

देश के साथ बड़ा मजाक

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देश के साथ बड़ा मजाक सात साल पहले एक आदमी ने कहा था कि देश में 1.76 लाख करोड़ का घोटाला हुआ है। दूसरे आदमी ने यह घोटाला जनता को समझाने के लिए आंदोलन चलाया। उसके साथ तीसरी औरत और चैथा आदमी भी जुड़ा। पांचवें आदमी ने 2G घोटाले को उजागर करने के लिए एक और आंदोलन चलाया। छठा आदमी घोटाले को सुप्रीम कोर्ट लेकर गया। सातवें आदमी ने इन 6 लोगों के काम को कम्पाइल किया और जनता से वोट मांगा। सात साल बाद... सभी आरोपी बरी हो गए। यानी घोटाला हुआ ही नहीं था। अब पहले आदमी यानी विनोद राय पद्मभूषण पाकर BCCI बॉस हैं । दूसरे अन्ना हजारे Z+ लेकर चुप हैं। तीसरी किरन बेदी उप राज्यपाल हैं। चौथे अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। पांचवें बाबा रामदेव अरबों रुपये का टर्न ओवर करने वाले कामयाब बिजनेसमेन हैं। छठे सुब्रमन्यम स्वामी सांसद हैं। सातवें मोदी जी प्रधानमंत्री हैं।  ...और आप बेवकूफ बन गए हैं, सही मायनों में इसी को मजाक कहते हैं।

कलम आज उनकी जय बोल

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कलम आज उनकी जय बोल पहले मन की गांठों को खोल राष्ट्र की अस्मिता बड़ी अनमोल बचाई है जिन्होंने देश की लाज कलम आज उनकी जय बोल आज कोई श्रृंगार मत लिखिए सावन गीत, मल्हार मत लिखिए वीर पुराण रच डालिए दिल खोल कलम आज उनकी जय बोल धूल चटा देना बैरी को रण में आस्तित्व मिला दो अब कण में फिर से कर दी नैया डांवाडोल कलम आज उनकी जय बोल भारत का तन-मन रो रहा है यह खुशनुमा चमन रो रहा है सब समझो आज़ादी का मोल कलम आज उनकी जय बोल नाम बड़ा ही रहा हिन्दुस्तान का दम निकल गया झूठी शान का जिसने फोड़ा पाकिस्तानी ढोल कलम आज उनकी जय बोल बारूद से, गोली की बरसात से डरे नहीं किसी भी झंझावात से हौसला बढ़ाओ उनका दिल खोल कलम आज उनकी जय बोल गर्व है वीरों के बलिदानों पर उन माओं पर और संतानों पर जो समझाएं आज़ादी का मोल कलम आज उनकी जय बोल आहुति प्राणों की देकर आए हैं माँ का चीर आज बचा  लाए हैं जिनका त्याग है बड़ा अनमोल कलम आज उनकी जय बोल देश को सींचा है सबने खून से मान बचाया है अपने जुनून से कुर्बानी को मजहब से न तोल कलम आज उनकी जय बोल

खुद को शोला नहीं, अंगार करो

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शोला नहीं, अंगार करो एक नहीं अब सौ-सौ बार करो, प्रतिदिन ऐसे ही पलटवार करो। सारा पाकिस्तान भस्म हो जाए, रणनीति अब कोई ठोस तैयार करो। आज मत करना श्रृंगार की बातें नहीं करना किसी सरकार की बातें बंद आज सारे गीत मल्हार करो रणनीति अब कोई ठोस तैयार करो। ललकार है आ जाओ अब रण में मिला दो दुश्मन को कण-कण में खुद को शोला नहीं, अंगार करो रणनीति अब कोई ठोस तैयार करो। भारत का मस्तक है झुकेगा नहीं यह वीरों का रथ है रुकेगा नही कोई तो नासमझ को शर्मसार करो रणनीति अब कोई ठोस तैयार करो। पाक में भी तिरंगा हम फ़हरा देंगे अपने इस मिशन को पार लगा देंगे एक नहीं हर हद को अब पार करो रणनीति अब कोई ठोस तैयार करो। भारत का तन और मन रो रहा है मेरा यह खुशनुमा चमन रो रहा है भुलाकर गिले इसकी नय्या पार करो रणनीति अब कोई ठोस तैयार करो।

मुस्कुराती बहारों को नींद आ गई

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मुस्कुराती बहारों को नींद आ गई आज यूं गम के मारों को नींद आ गई, जैसे जलते  शरारों को  नींद आ गई। थे  ख़ज़ां में  यही होशियार-ए-चमन, फूल चमके तो खारों को नींद आ गई। तुमने नज़रें उठाईं सर-ए-बज़्म जब, एक पल में हजारों को नींद आ गई। वो जो गुलशन में आए मचलते हुए, मुस्कुराती बहारों  को नींद आ गई। चलती देखी है 'अरशद'' इक ऐसी हवा, जिससे दिल के शरारों को नींद आ गई। ------------------ शब्दार्थ... शरारों = अंगारों, खजां = पतझड़, चमन/गुलशन = उपवन, खारों = कांटों, बज़्म = महफ़िल, बहार = बसंत।

इतिहास ज्वलंत हो जाए

इतिहास ज्वलंत हो जाए देश का इतिहास  ज्वलंत हो जाए, आतंकवाद का जब अंत हो जाए। मनाएं हम सब मिल कर खुशियां, फिर तो हर  ऋतु बसंत  हो जाए।

खून नहीं बहने देंगे

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खून नहीं बहने देंगे सेना की सूझबूझ पर गर्व है, जिसे युद्ध, क़ुरबानी, शांति और निर्माण अनुभव का। धिक्कार है उन पर जिन्हें अनुभव है... सिर्फ़ दंगा, हिंसा, हत्या, विध्वंस, और बदअम्नी का...। राजनीति चाहे... लाशों पर हो, सेना पर, चाहे मंदिर-मस्जिद पर हो, देश विरोधी घृणित नीति को देश निकाला दे देंगे। सौगंध हमें इस मिट्टी की देश नहीं लुटने देंगे, ख़ून नहीं बहने देंगे। मेहनतकशों! अब हाथ उठाओ, शीश नहीं झुकने देंगे, देश नहीं बिकने देंगे।

मेरे रस-छंद तुम, अलंकार तुम्हीं हो

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मेरे  रस-छंद तुम, अलंकार तुम्हीं हो जीवन नय्या के  खेवनहार तुम्हीं हो, तुम्हीं गहना हो मेरा श्रृंगार तुम्हीं हो। मेरी तो पायल की झनकार  तुम्ही हो, बिंदिया, चूड़ी, कंगना, हार तुम्हीं हो। प्रकृति का  अनुपम उपहार तुम्ही हो, जीवन का सार, मेरा संसार तुम्ही हो। पिया  तुम्हीं तो हो  पावन  बसंत मेरे, सावन का गीत और मल्हार तुम्हीं हो। तुम्हें देखकर जनम लेती हैं कविताएं, मेरे  रस-छंद तुम, अलंकार तुम्हीं हो। धन की चाह नहीं मन में बसाए रखना, मेरी जमा पूंजी तुम, व्यापार  तुम्हीं हो। जुग-जुग  का संग है  हमारा-तुम्हारा, सातों जनम के मेरे सरकार तुम्हीं हो। जी ये चाहे  तुम्हीं  को पढूं में  रात-दिन, मेरी किताब तुम हो, अखबार तुम्हीं हो।

लहू के आंसू गिरने लगे आसमान से

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लहू के आंसू... कौन रुख़सत हुआ है हिन्दुस्तान से लहू के आंसू गिरने लगे आसमान से देखे थे जो सपने सब चकनाचूर हुए तार-तार सब उनके शुभ दस्तूर हुए नहीं मिलेंगे वो हमको इतने दूर हुए भेजा था सीमा पर किस अरमान से    कौन रुख़सत हुआ है हिन्दुस्तान से    लहू के आंसू गिरने लगे आसमान से आंधियों से तूफां बनकर टकरा गया फर्ज था उसका निभाकर चला गया जैसे वह सोचकर निकला हो घर से तिरंगे में लिपटकर आऊंगा शान से    कौन रुख़सत हुआ है हिन्दुस्तान से    लहू के आंसू गिरने लगे आसमान से बरबाद नहीं होगी वीर! कुर्बानी तेरी ओ दुश्मन याद दिला देंगे नानी तेरी और ज्यादा नहीं चलेगी मनमानी तरेी हम भी अब सौ सिर उड़ाएंगे एलान से    कौन रुख़सत हुआ है हिन्दुस्तान से    लहू के आंसू गिरने लगे आसमान से कैसे सब्र करें इतने वीरों को खोया है धरती तो क्या आसमान तक रोया है देखें तो तुमने बारूद कितना बोया है चलो आरपार हो जाए पाकिस्तान से    कौन रुख़सत हुआ है हिन्दुस्तान से    लहू के आंसू गिरने लगे आसमान से होली हो, वह ईद हो चाहे हो दीवाली तुम बिन लगती हर खुशी अब काली हर खुशी मानो जैसे द रही हो गाली

कब तक सहमे रहोगे ललकारों से?

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 कब तक सहमे रहोगे ललकारों से? अरशद रसूल यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई देश का हक़ था अदा कर गया कोई बिटिया के पीले हाथ कौन करेगा शहनाइयों का काम अब मौन करेगा दायित्वों का निर्वहन कौन करेगा जान पर खेलकर गुजर गया कोई यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई देश का हक़ था अदा कर गया कोई अंधेरा कितना कर दिया इक फायर ने बुढ़ापे की लाठी छीनी उस कायर ने मरा नहीं, अमरत्व पाया है इक नाहर ने देश का कर्ज यूं अदा कर गया कोई यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई देश का हक़ था अदा कर गया कोई करुण क्रंदन बनी घर की किलकारी कोई दहाड़े, कोई चूड़ी तोड़े बेचारी पापा अब न आएंगे चीखे राज दुलारी ज़िंदगी के कर्ज अदा कर गया कोई यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई देश का हक़ था अदा कर गया कोई बिंदिया-चूनर रोएंगे और सिंदूर रोएगा हर खुशी रोएगी, हर शुभ दस्तूर रोएगा बूढ़ी आंखें चुप हैं, दिल भरपूर रोएगा हर आंख को आंसुओं से भर गया कोई यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई देश का हक़ था अदा कर गया कोई दुश्मन का दुस्साहस कितना तगड़ा है कितनी ही मांगों का सिंदूर उजड़ा है मातम ही मातम हर ओर उमड़ा है यूं भ