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स्क्रीन में गुम होता बचपन

 “मम्मी, मेरा फोन कहाँ है?” “थोड़ा गेम खेल लूं ना, प्लीज़!” “खाना तभी खाऊँगा जब वीडियो चलाओगे!” अगर आपके घर में भी ये आवाज़ें रोज़ गूंजती हैं, तो सतर्क हो जाइए — ये सिर्फ बच्चों की ज़िद नहीं, बल्कि एक खामोश खतरे की आहट हैं — मोबाइल की लत। आज के डिजिटल युग में मोबाइल एक ज़रूरत बन गया है, लेकिन जब यही ज़रूरत बच्चों के लिए लत बन जाए, तो यह उनके बचपन को धीरे-धीरे निगलने लगती है। यह लत उनके मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की नींव को हिला सकती है। — ऐसे लगती है मोबाइल की लत बच्चों की जिज्ञासा और मोबाइल की रंग-बिरंगी, चलायमान स्क्रीन का मेल बेहद आकर्षक होता है। यह आकर्षण धीरे-धीरे आदत बनता है और फिर लत। मोबाइल न मिलने पर बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है, गुस्सा करता है और समाज से कटने लगता है। — इन लक्षणों से पहचानें: हर वक्त मोबाइल की मांग खेल-कूद, पढ़ाई या दोस्तों से दूरी खाना खाते समय वीडियो की ज़िद संवाद में कमी और अकेले रहना पसंद करना नींद की कमी और व्यवहार में चिड़चिड़ापन — वैज्ञानिक चेतावनी: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (AAP) के अनुसार: 2 साल से कम उम्र...