बुराइयां जलाने की जरूरत

बुराइयां जलाने की जरूरत

पर्यावरण की रक्षा के लिए उपलों की होली जलाना बेहतरीन विकल्प हो सकता है। इसके अलावा हम सभी को मिलकर उन बुराइयों की होली जलानी चाहि, जो विनाश के बजाय सामाजिक विकास में सहायक हो...

अरशद रसूल

त्योहार पर एक ही दिन में लाखों पेड़ अग्नि में स्वाह हो जाते हैं। एक साथ न जाने कितनी तरह की गैसों का जहर पर्यावरण में घुल जाता है। त्योहार पर एक बड़े इलाके में लहलहाने वाले पेड़ों का सफाया हो जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के दौर में क्या यह ठीक है? उत्तर भारत में मकर संक्रांति के ठीक एक दिन पहले लोहड़ी मनाने की परंपरा है। ऐसे ही दक्षिण भारत में पोंगल मनाया जाता है। होलिका दहन की तरह ही लोहड़ी पर भी आग जलाई जाती है। सामूहिक और पारिवारिक रूप से लोग इसमें भाग लेते हैं। तर्क कहा जाए या किदवंती कि लोहड़ी पर आग जलाने से पृथ्वी गर्म हो जाती है और सर्दी में ठिठुरन से छुटकारा मिलता है।
    अग्नि पवित्र होती है और हमारे लिए ऊष्मा का महत्त्वपूर्ण स्रोत भी है। यह भी सच है कि मानव जीवन के लिए अग्नि का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इसके साथ ही सवाल यह भी है कि जिस तरह आज लोहड़ी मनाई जाती है, क्या वह प्रासंगिक है? हम परंपरागत ढंग से त्योहार मनाकर खुद अपने पर्यावरण को दूषित कर रहे हैं। साथ ही संसाधनों का दुरुपयोग करके कहीं हम अपने पैरों के नीचे खाई तो नहीं खोद रहे? इसलिए लोहड़ी, होली और अन्य पर्वो पर कुछ परंपराओं को बदलने की कोशिश की जा सकती है।
    गांधीजी ने भी एक बार विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। चूंकि उस समय भारतीय शिल्पियों-कारीगरों के हाथों से काम छिन रहा था, इसलिए उन्होंने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार कर उसकी होली जलाने का अद्वितीय और सार्थक निर्णय लिया था। लकड़ियों के साथ औषधियां, उपयोगी वनस्पतियां, कागज, कचरा जलाना भी नुकसान पहुंचाता है। तमाम तरह की लापरवाही से वैसे ही लगातार पर्यावरण बिगड़ रहा है। आर्थिक विकास में उलझकर लगातार हम पर्यावरण सुरक्षा को नजर अंदाज कर रहे हैं। अपशिष्टों के निपटान से भी पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। ऊपर से कर्मकांडों और पर्वों पर स्थिति गंभीर हो रही है।
    पेड़ों को बचाने और पर्यावरण की रक्षा के लिए उपलों की होली भी बेहतरीन विकल्प हो सकता है। इसके अलावा हम सभी को मिलकर ऐसी चीजों की होली जलानी चाहिए, जो विनाश के बजाय सामाजिक विकास में सहायक हो। ऐसी चीजों की होली जलाएं, जिससे पर्यावरण साफ हो और हम साफ-सुथरी सांस ले सकें। दिलो दिमाग से नकारात्मक विचारों-भावों की होली जलाएं, ताकि सभी निडर होकर जिंदगी गुजार सकें। तमाशबीन बनने के बजाय अन्याय का विरोध करने की ताकत पैदा करने की कोशिश करें। बुराई का त्याग, स्वार्थ-अज्ञानता का सफाया, वैमनस्य, घृणा, द्वेष भाव, अहंकार जैसी चीजों की होली जलाएं तो निश्चित ही आत्म संतोष की अनुभूति होगी। 

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