मीडिया पर हावी होता बाज़ारवाद
मीडिया पर हावी होता बाज़ारवाद
एक विषय पर अलग-अलग बातें करके मीडिया व्यापारी दो वर्गों को खुश करने में पूरी तरह कामयाब हो रहे हैं। हमें ऐसे दोगले चरित्र वाले मीडिया संस्थानों को बेनकाब कर सामाजिक बहिष्कार करना ही होगा।
हिन्दुस्तानी मीडिया हमेशा से पीडि़त, वंचित, शोषित, उपेक्षित वर्ग की आवाज उठाता रहा है। मीडिया की ईमानदारी और मिशन मोड में काम करने के अंदाज ने हमेशा सभी को अपनी तरफ आकर्षित किया है। मीडिया के लिए आम आदमी के मन में सम्मान और आकर्षण की भावना रही है। शायद इसी वजह से भारतीय लोकतंत्र में प्रेस/मीडिया को चौथे स्तंभ का दर्जा दिया गया है। मीडिया ने भी हर दौर में एक सजग प्रहरी के रूप में अपने कर्तव्य का पालन किया है। समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार से मीडिया पर्दा उठाता रहा है।
आज भी मीडिया के हस्तक्षेप से तमाम लोगों को न्याय मिलता है। अपना धर्म निभाने में न जाने कितने ही मीडिया कर्मियों ने परेशानियों का सामना किया। यहां तक कि मौत का सामना भी करना पड़ा, फिर भी उन्होंने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ा। सलाम है ऐसे कर्तव्य परायण मीडिया कर्मियों के जज्बे को।
मुझे कहने दीजिए कि मीडिया मिशन मोड से बाहर निकलकर विशुद्ध रूप से व्यावसायिक हो चुका है। हालांकि व्यासायिक होना भी समय की मांग है। मीडिया से भी एक बड़े तबके की आजीविका जुड़ चुकी है। इसलिए व्यासायिक होना कोई बुरी बात भी नहीं है लेकिन भले-बुरे में भेद किए बगैर उसूलों को ताक पर रखकर सीमाओं को पार करना भी ठीक नहीं है। अब मीडिया का स्वरूप भी बहुत तेजी से विकृत हो रहा है। इसकी तस्वीर भी अन्य क्षेत्रों की तरह गंदी होती जा रही है। ऐसा भी नहीं है कि सभी एक जैसे हों। इस दलदल के बीच तमाम मीडिया कर्मी कमल की तरह नजर आ रहे हैं।
फिलहाल आपका ध्यान एक हिन्दी दैनिक अखबार की तरफ खींचना है। यह हिन्दी दैनिक खबर प्रकाशित करता है कि कठुआ में दुष्कर्म नही हुआ था। उसी अखबार का उर्दू संस्करण कठुआ की वह रिपोर्ट प्रकाशित करता है जो फ रेंसिक लैब से आई थी। एक ही मीडिया समूह दो अलग भाषाओं में दो रंग की बात करता नजर आता है। उसका हिन्दी संस्करण अपने बाजार पर काबिज होने के लिए झूठी खबर प्रकाशित करने से परहेज नहीं करता। उर्दू संस्करण अपने बाजार पर काबिज होने के लिए लैब की रिपोर्ट पर आधारित खबर छापता है। इसी तरह एक न्यूज चैनल रात-दिन मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलता है। उसी का उर्दू चैनल रात-दिन मुस्लिम उपेक्षा और उनके हितों की बात करता है। थोड़ी देर के लिए ह्रिन्दी चैनल की न्यूज देखिए और फिर उर्दू चैनल देखिए। फिर आसानी से समझ में आ जाएगा कि एक ही छत के नीचे से से ये अखबार और चैनल किस तरह बाजार पर काबिज होते जा रहे हैं। इसी तरह एक अन्य चैनल के कई एंकर रोजाना मुसलमानों को गालियां देते हैं, उन्हीं का उर्दू चैनल मुस्लिम मसाइल और हकों की बात करता है। इस कार्यशैली को तो सीधे तौर पर दोगुलापन ही कहा जाएगा।
सुना तो यहां तक है कि व्यावसायिक होने के बाद दिमाग शातिर हो जाता है। व्यवसायी को समाज से नहीं बल्कि अपने बाजार से सरोकार होता है। उसे मालूम है कि अगर एक वर्ग विशेष उसका हिन्दी अखबार नहीं पढ़ेगा तो उर्दू संस्करण खरीदेगा। एक ही विषय पर अलग-अलग बातें करके मीडिया व्यापारी दो वर्गों को खुश करने में पूरी तरह कामयाब हो रहे हैं। हमें ऐसे दोगले चरित्र वाले मीडिया संस्थानों को बेनकाब कर सामाजिक बहिष्कार करना ही होगा।

Very nice
ReplyDeleteशुक्रिया
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