कब तक सहमे रहोगे ललकारों से?
कब तक सहमे रहोगे ललकारों से?
अरशद रसूलयह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
बिटिया के पीले हाथ कौन करेगा
शहनाइयों का काम अब मौन करेगा
दायित्वों का निर्वहन कौन करेगा
जान पर खेलकर गुजर गया कोई
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
अंधेरा कितना कर दिया इक फायर ने
बुढ़ापे की लाठी छीनी उस कायर ने
मरा नहीं, अमरत्व पाया है इक नाहर ने
देश का कर्ज यूं अदा कर गया कोई
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
करुण क्रंदन बनी घर की किलकारी
कोई दहाड़े, कोई चूड़ी तोड़े बेचारी
पापा अब न आएंगे चीखे राज दुलारी
ज़िंदगी के कर्ज अदा कर गया कोई
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
बिंदिया-चूनर रोएंगे और सिंदूर रोएगा
हर खुशी रोएगी, हर शुभ दस्तूर रोएगा
बूढ़ी आंखें चुप हैं, दिल भरपूर रोएगा
हर आंख को आंसुओं से भर गया कोई
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
दुश्मन का दुस्साहस कितना तगड़ा है
कितनी ही मांगों का सिंदूर उजड़ा है
मातम ही मातम हर ओर उमड़ा है
यूं भी हम पर उपकार कर गया कोई
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
गर्व है भारत को ऐसे परिवारों पर
देश के सपूतों और वीर संतानों पर
नमन करो मिलकर इन बलिदानों पर
बलिदान ऐसा अनूठा कर गया कोई
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
कब तक सहमे रहोगे ललकारों से
कब बदला लोगे तुम इन गद्दारों से
बदले में सौ सिर बिछा दो तलवारों से
अफसोस कायर का न सर गया कोई
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई

Lajabab arshar bhai
ReplyDeleteशुक्रिया
ReplyDeleteSuperr
ReplyDeleteThanks
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