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रक्षाबंधन

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पवित्र प्यार का अनमोल बंधन रक्षाबंधन सिर्फ़ एक त्योहार नहीं, बल्कि भाई-बहन के अटूट रिश्ते की बुनियाद है। प्यार, विश्वास और रक्षा के संकल्प से बुना एक पवित्र बंधन। यह दिन महज़ राखी बांधने का नहीं, बल्कि उन अनगिनत यादों, हंसी-ठिठोली, नोकझोंक और अपनत्व के एहसास को फिर से जीने का है, जो बचपन से लेकर आज तक इस रिश्ते की नींव को मज़बूती देते हैं। इस दिन हर बहन की आंखों में भाई को देखने की चमक के साथ बचपन की तस्वीरें उभरने लगती हैं। वो चॉकलेट के लिए हुई मासूम लड़ाइयाँ, खिलौनों को लेकर नोंक-झोंक और फिर बिना कहे ही गलती माफ़ कर देने का अपना अलग अंदाज़। रक्षाबंधन उन बीते पलों को फिर से जीने का सबसे प्यारा जरिया बन जाता है। शादी के बाद चाहे बहन दूर चली जाए, लेकिन रक्षाबंधन की अनोखी सुबह उसे अपने मायके की दहलीज की तरफ खींच ही लाती है। वो दहलीज, जहां उसकी हंसी के साथ भाई की शरारतें और मां की ममता आज भी महकती हैं। एक बहन के लिए भाई का घर सिर्फ़ ईंट-पत्थर की इमारत नहीं, बल्कि उसकी भावनाओं का मंदिर होता है। इस रिश्ते की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि यह संपत्ति और भौतिकता से परे दिल की गहराइयों से जुड़ा...

ऑपरेशन सिंदूर: मातम बना मातृभूमि का श्रृंगार

  ऑपरेशन सिंदूर: मातम बना मातृभूमि का श्रृंगार 22 अप्रैल 2025 की सुबह, पहलगाम की वादियों में वो सुकून पसरा था। देखकर हर किसी का मन कह उठे “काश, यहीं ठहर जाए ज़िंदगी।” धरती पर फैली घास की हरियाली, दूर तक बर्फ से ढके पहाड़, नीला आसमान और उनकी गोद में खेलते बच्चे, आपस में अठखेलियां करते नवयुगल, हँसते-खिलखिलाते सैलानी और इन हसीन नज़ारों को देख कर मुस्कुराते स्थानीय लोग…सब कुछ मानो जन्नत की तस्वीर हो। कोई जीवन साथी के साथ बर्फ़ की फुहारों में प्रेम के पल बाँट रहा था। कोई अपने बच्चों को कश्मीरी चाय का स्वाद चखाते हुए कह रहा था, “याद रहेगा यह सफ़र…” लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह याद अधूरी रह जाएगी, अंतिम रह जाएगी।  …और फिर एक धमाका हुआ, एक ऐसी आवाज़, जिसने न सिर्फ घाटी के सुकून को तहस-नहस किया, बल्कि पूरे मुल्क के दिल को दहला कर रख दिया। चंद लमहों में चीखें, कोहराम, भगदड़ और खून से लथपथ शरीर। पहलगाम का सुकून किसी ज़ख़्मी इतिहास में बदल गया था। उस वादी में, जहां प्रेम के गीत गूंजने चाहिए थे, मातम का संगीत था।  26 निर्दोष लोग मार दिए गए। उनमे एक मासूम बच्ची थी जो पहली बार बर्फ देख...

स्क्रीन में गुम होता बचपन

 “मम्मी, मेरा फोन कहाँ है?” “थोड़ा गेम खेल लूं ना, प्लीज़!” “खाना तभी खाऊँगा जब वीडियो चलाओगे!” अगर आपके घर में भी ये आवाज़ें रोज़ गूंजती हैं, तो सतर्क हो जाइए — ये सिर्फ बच्चों की ज़िद नहीं, बल्कि एक खामोश खतरे की आहट हैं — मोबाइल की लत। आज के डिजिटल युग में मोबाइल एक ज़रूरत बन गया है, लेकिन जब यही ज़रूरत बच्चों के लिए लत बन जाए, तो यह उनके बचपन को धीरे-धीरे निगलने लगती है। यह लत उनके मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की नींव को हिला सकती है। — ऐसे लगती है मोबाइल की लत बच्चों की जिज्ञासा और मोबाइल की रंग-बिरंगी, चलायमान स्क्रीन का मेल बेहद आकर्षक होता है। यह आकर्षण धीरे-धीरे आदत बनता है और फिर लत। मोबाइल न मिलने पर बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है, गुस्सा करता है और समाज से कटने लगता है। — इन लक्षणों से पहचानें: हर वक्त मोबाइल की मांग खेल-कूद, पढ़ाई या दोस्तों से दूरी खाना खाते समय वीडियो की ज़िद संवाद में कमी और अकेले रहना पसंद करना नींद की कमी और व्यवहार में चिड़चिड़ापन — वैज्ञानिक चेतावनी: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (AAP) के अनुसार: 2 साल से कम उम्र...

बरेली में झुमका यहां गिरा

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बरेली ही क्या दुनिया भर के लोगों को यह सवाल परेशान करता रहा है कि आखिर, झुमका गिरा तो गिरा कहां? कई मौकों पर लोगों का बरेली आना-जाना लगा रहता है। ऐसे तमाम लोगों का यही सवाल रहता है कि झुमका गिरा कहां था? सवाल सुनकर बरेली वालों की जुबान पर खामोशी के अलावा कुछ नहीं होता है। सही बात तो यह है कि उनको ही नहीं मालूम कि झुमका कहां गिरा था? इस गाने को राजा मेहंदी अली खां ने लिखा था। इसमें साठोत्तरी कविता के सभी तत्व मौजूद हैं। सन 1966 की फिल्म “मेरा साया” के इस गीत की धुन मदन मोहन ने तैयार की थी और आवाज आशा भोसले ने दी थी। यह गाना लोगों की जुबान पर इस कदर चढ़ा कि खुद बरेली वाले पूछते कि झुमका किस बाजार में गिरा था??? सन 1966 में राजा मेहदी अली खां के उठाए गए सवाल का जवाब अब लगभग पांच दशक बाद मिल पाया है। लंबी खोजबीन के बाद मालूम हुआ, या यूं कहें कि कृत्रिम रूप से तय किया गया है कि बरेली के रामपुर-नैनीताल तिराहे पर झुमका गिरा था। बरेली वालों ने तय किया है कि उसी डिजाइन के झुमके को मिनी बाइपास तिराहे पर 14 मीटर के उसी दायरे में रखा जाए, जहां वह गिरा था। यह भी तय किया गया कि झुमके को बड़े साइज में...

बुराइयां जलाने की जरूरत

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बुराइयां जलाने की जरूरत पर्यावरण की रक्षा के लिए उपलों की होली जलाना बेहतरीन विकल्प हो सकता है। इसके अलावा हम सभी को मिलकर उन बुराइयों की होली जलानी चाहि ए , जो विनाश के बजाय सामाजिक विकास में सहायक हो... अरशद रसूल त्यो हार पर एक ही दिन में लाखों पेड़ अग्नि में स्वाह हो जाते हैं। एक साथ न जाने कितनी तरह की गैसों का जहर पर्यावरण में घुल जाता है। त्योहार पर एक बड़े इलाके में लहलहाने वाले पेड़ों का सफाया हो जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के दौर में क्या यह ठीक है? उत्तर भारत में मकर संक्रांति के ठीक एक दिन पहले लोहड़ी मनाने की परंपरा है। ऐसे ही दक्षिण भारत में पोंगल मनाया जाता है। होलिका दहन की तरह ही लोहड़ी पर भी आग जलाई जाती है। सामूहिक और पारिवारिक रूप से लोग इसमें भाग लेते हैं। तर्क कहा जाए या किदवंती कि लोहड़ी पर आग जलाने से पृथ्वी गर्म हो जाती है और सर्दी में ठिठुरन से छुटकारा मिलता है।     अग्नि पवित्र होती है और हमारे लिए ऊष्मा का महत्त्वपूर्ण स्रोत भी है। यह भी सच है कि मानव जीवन के लिए अग्नि का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इसके साथ ही सवाल यह भी है कि जिस तरह आज लोहड़ी मनाई जाती है, क...

अंतर्मन को झकझोरता है "दरपन"

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अंतर्मन को झकझोरता है " दरपन "  'दरपन ' हिंदी कोटेशन की एक अनूठी किताब है, जो हर व्यक्ति के अंतर्मन को झकझोरने के Iलिए काफी है। किताब की खासियत यह है कि इसमें आसान हिंदी के आसान हिंदी का प्रयोग किया गया है। लेखक अरशद रसूल की इस किताब को अबीहा पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है। पॉकेट साइज में 64 पेज की इस किताब में जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर आसान हिंदी शब्दों में अनमोल कोटेशन है। छोटा साइज होने के कारण किताब को आसानी से जेब में भी रखा जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय मानक पुस्तक संख्या के साथ प्रकाशित यह किताब वास्तव में पढ़ने योग्य है।  किताब को अमेज़न, फ्लिपकार्ट से खरीदा जा सकता है। यह किंडल ईबुक स्टोर पर भी उपलब्ध है। लेखक ने पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से प्रभावित होकर इस किताब को लिखा है। विश्व हिंदी दिवस पर प्रकाशित यह किताब कलाम साहब को ही समर्पित की गई है। उदाहरण के तौर पर पेश हैं कुछ कोटेशन- कभी भी किसी से जलना नहीं चाहिए। अंतर्मन से निकलने वाला धुआं अपने ही बुद्धि-विवेक और आत्मा को दूषित कर देता है। दुनिया को बदल देने का मिशन नाकाम हो सकता है। अपने वुजूद को ही दुन...

झूठी कहानी सुना दें

अगर आप चाहे तो गरदन उड़ा दें यह मुमकिन नहीं हम कसीदा सुना दें तुम्हें शान अपनी बढ़ानी अगर हो उसे आज झूठी कहानी सुना दें यहां भूख रो कर यही कह रही है सुकूं के लिए ज़हर देकर सुला दें खुदा मान सकते नहीं नाखुदा को अगर आप चाहे सफ़ीना डुबा दें हमें गम की तौहीन करनी नहीं है जगह बे जगह कैसे आंसू गिरा दें वतन पर बुरा वक्त आने न पाए ज़रूरी अगर हो यह सर भी कटा दें मकां तो बनाया बड़ा खूबसूरत अगर हो मुनासिब इसे घर बना दें