...भेष बनाए हुए हैं लोग

...भेष बनाए हुए हैं लोग

कुछ इस तरह का भेष बनाए हुए हैं लोग,
जैसे कि देव लोक से आए हुए हैं लोग।

आवाजें सुन न पाए समय, वर्तमान की,
प्राचीनता का शोर मचाए हुए हैं लोग।

हैं नहीं वो खुद को दिखाने की फिक्र में,
चेहरे पर इश्तहार लगाए हुए हैं लोग।

बेकारी, बीमारी , अशिक्षा की आग से,
कुर्सी तो अपनी अपनी बचाए हुए हैं लोग।

अब कुछ ही छायादार पेड़ और बचे हैं,
उन पे भी गिद्ध दृष्टि जमाए हुए हैं लोग।

रहने न देते दीप, तेल , बाती आसपास,
कुछ रौशनी से खौफ सा खाए हुए हैं लोग।

गाता है कौन , गाता नहीं, बन्दे मातरम
कितना अहम सवाल उठाए हुए लोग।
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काले को सफेद बना देते हैं लोग,
झूठ को सच बना देते हैं लोग।

तिल तिल पिसता गरीब देश का,
गाय, गोबर में उलझा देते हैं लोग।
-----अज्ञात-----

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