औरत को जो समझता था मर्दों का खिलौना

औरत को जो समझता था मर्दों का खिलौना

आमतौर पर महिलाओं को कमज़ोर माना जाता है, लेकिन हक़ीक़त इससे अलग है। ऐसा कोई भी मैदान नहीं है जहां महिलाओं ने अपने जौहर न दिखाए हों। महिलाओं ने अपने हक़ की लड़ाई बहुत बेबाकी से लड़ी है और दिखा दिया कि वह किसी से कम नहीं हैं। महिला दिवस पर हम इस वर्ग के जज़्बे को सलाम करते हैं। यहां पेश हैं महिलाओं से जुड़े कुछ शेर-


औरत अपना आप बचाए तब भी मुजरिम होती है
औरत अपना आप गँवाए तब भी मुजरिम होती है
- नीलमा सरवर
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कौन बदन से आगे देखे औरत को
सबकी आँखें गिरवी हैं इस नगरी में
- हमीदा शाहीन
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औरत को चाहिए कि अदालत का रुख़ करे
जब आदमी को सिर्फ़ ख़ुदा का ख़याल हो
- दिलावर फ़िगार
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शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
रौनके़ं जितनी यहां हैं औरतों के दम से हैं
- मुनीर नियाज़ी
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अभी रौशन हुआ जाता है रास्ता
वो देखो एक औरत आ रही है
- शकील जमाली
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औरतें काम पर निकली थीं बदन घर रख कर
जिस्म ख़ाली जो नज़र आए तो मर्द आ बैठे
- फ़रहत एहसास
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औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ
एक सच के तहफ़्फ़ुज़ के लिए सबसे लड़ी हूँ
- फ़रहत ज़ाहिद
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औरत को जो समझता था मर्दों का खिलौना
उस शख़्स को दामाद भी वैसा ही मिला है
- तनवीर सिप्रा
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किस्सा-ए-आलम में एक और ही वहदत पैदा कर ली है
मैंने अपने अंदर अपनी औरत पैदा कर ली है
- फ़रहत एहसास
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देखूं तेरे हाथों को तो लगता है तेरे हाथ
मंदिर में फ़कत दीप जलाने के लिए हैं
- जाँ निसार अख़्तर
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बहुत कम बोलना अब कर दिया है
कई मौक़ों पे गुस्सा भी पिया है
- शम्स तबरेज़ी
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हिम्मत है तो बुलंद कर आवाज़ का अलम
चुप बैठने से हल नहीं होने का मसला
- ज़िया जालंधरी
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दुआ को हाथ उठाते हुए लरज़ता हूँ
कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
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एक मुद्दत से मेरी माँ नहीं सोई 'ताबिश'
मैंने इक बार कहा था मुझे डर लगता है
- अब्बास ताबिश
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मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए
मैं तो हर वक़्त मोहब्बत से भरा रहता हूँ
- मिर्ज़ा अतहर ज़िया
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भारी बोझ पहाड़ सा कुछ हल्का हो जाए
जब मेरी चिंता बढ़े माँ सपने में आए
- अख़्तर नज़्मी

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