सर तो कटा सकते हैं, सर को झुका सकते नहीं

- अरशद रसूल

सर तो कटा सकते हैं, सर को झुका सकते नही...

इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके...यह देश है तुम्हारा नेता तुम्हीं हो कल के... सचमुच शकील बदायूंनी के ये गीत नहीं बल्कि एक आंदोलन है। बरसों पुराने ये नगमे आज भी अमर और लाजवाब है। इनको सुनकर देश के जांबाज सैनिकों के खून में दुश्मन के खिलाफ उबाल आता है तो नौनिहालों के मन में देशभक्ति की भावना के अंकुर जरूर फूटते हैं। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या अन्य राष्ट्रीय पर्वों पर इन गीतों की गूंज कानों में रस जरूर घोलती है। इल्म से फ़िल्म तक का कामयाब सफ़र तय करके तमाम फिल्मों में सदाबहार नगमे लिखकर वो अमर हा गए।
    आमतौर पर शकील बदायूंनी को रूमानी शायर कहा जाता है। अगर ईमानदारी के चश्मे से देखा जाए तो उनके कलाम में हर वह रंग शामिल है, जिसकी समाज को दरकार है। उनके कलाम में साक़ी, मयखाना, शिकस्ता दिल, जिगर वगैरह सभी का बेहद ख़ूबसूरती के साथ जिक्र मिलता है। साथ ही उन्होंने समाज की सच्ची तस्वीर को भी अपने अलफ़ाज़ में बयां किया है। अपने गीत और ग़ज़लों के जरिए शकील आज भी जिंदा हैं। उन्होंने सभी तरह की शायरी की, चाहे वह रूमानी हो या मजहबी। सभी पहलुओं पर खूब बेबाकी और साफगोई से काम किया और नाम कमाया। 
शकील साहब अपनी शायरी में समाज और खुद से एक साथ सवाल भी किए हैं। उसकी एक बानगी यह भी है- न सोचा था दिल लगाने से पहले, कि टूटेगा दिल मुस्कुराने से पहले। हर गम उठाना था किस्मत में अपनी, खुशी क्यों मिली गम उठाने से पहले? समाज मे प्यार फेलाने की एक बनगी देखिए-प्यार की आंधी रुक न सकेगी नफरत की दीवारों से, खूने मुहब्बत हो न सकेगा खंजर से तलवारों से।
    शकील बदायूंनी की पैदाइश अगस्त 1916 को उत्तर प्रदेश के शहर बदायूं के मुहल्ला वैदों टोला में जमील अहमद सोख़्ता के यहां हुई। चूंकि घर में अदबी (साहित्यिक) माहौल था, इसलिए शायरी के प्रति शुरू से ही रुझान था। शहर के हाफि़ज़्ा सिद्दीक़ इस्लामिया हायर सेकेंड्री स्कूल से 10वीं पास किया। इसी बीच 24 साल की उम्र में सलमा बी के साथ शादी हो गई। अलीगढ़ मुसिलम विश्वविद्यालय से 1937 में बी.ए. पास किया और शायरी के समंदर में डूबते चले गए। अक्सर यूनिवर्सिटी लेबिल पर शायरी के मुकाबलों में शरीक होकर कई एवार्ड हासिल किए। इसके बाद 1943 तक दिल्ली में सप्लाई आफिसर के पद पर नौकरी की। इस दौरान भी शायरी करते हुए अपने फ़न को निखारते रहे।
    सन 1946 में उन्होंने दिल्ली के एक मुशायरे में नई ग़ज़ल पढ़ी- गमे आशिक़ी से कह दो रहे आम तक न पहुंचे, मुझे ख़ौफ़ है कि तोहमत मेरे नाम तक न पहुंचे। मैं नजर से पी रहा था तो दिल ने बद दुआ दी, तेरा हाथ जिंदगी भर कभी जाम तक न पहुंचे। इसको सुनकर फि़ल्म डयरेक्टर ए.आर. कारदार ने फि़ल्मी दुनिया में आने का बुलावा दे दिया। इसके बाद वह मुम्बई चले गए। फिर महान संगीतकार नौशाद से मुलाकात हुई। उनके संगीत वाली फि़ल्म दर्द के सभी गाने लिखने का मौका मिला। नौशाद के कहने पर शकील ने हम दिल का अफसाना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल में मुहब्बत की आग लगा देंगे... गीत लिखा। यह सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि फिर पीछे मड़कर नहीं देखा। उन्होंने उड़न खटोला, कोहिनूर, मुगले आजम, आन दीदार, गंगा-जमुना, लीडर, संघर्ष, आदमी समेत लगभग 100 फिल्मों के गाने लिखे।
भजन, नात दोनों में कमाल : शकील बदायूंनी अपने समय के इकलौते सभी के महबूब शायर हैं। उन्होंने भक्ति रस में खूब काम किया। ऐसा नहीं कि किसी खास वर्ग की भक्ति में लिखा हो, बल्कि अन्य धर्मों का भी ध्यान रखा है। उनकी लिखी नात और मनकबत को खूब पसंद किया जाता है। वहीं भजनों में भी बराबर की हिस्सेदारी रही है। मन तड़पत हरि दर्शन को आज, राधा के प्यारे कृष्ण कन्हाई, इंसाफ का मंदिर, मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयोे रे... आदि भजनों को खूब पसंद किया जाता है। इसी तरह अपनी अकीदत को यूं भी बयां किया है- काश मौत ही न आ जाए ऐसे जीने से, आशिके नबी होकर भी दूर हैं मदीने से। सभी को जोड़ते हुए कहते हैं- मंदिर में तू मस्जिद में और तू ही है ईमानों में, मुरल की तानों में तू और तू ही है अजानों में। 
अमर हो गए गीत : उनके गीत इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओं चलके... सुनकर देशभक्ति की भावना का संचार होता है। वहीं अन्य गाने भी प्रेम का संचार करते हैं। गीत प्यार किया तो डरना क्या, ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ ले ले, आज पुरानी राहों से, जिंदगी देने वाले सुन, मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोए, अफसाना लिख रही हूं, यह जिंदगी के मेले, छोड़ बाबुल का घर, जोगन बन जाऊंगी सइयां तोरे कारन, ओ दुनिया के रखवाले, चले आज तुम जहां से, चौदहवीं का चांद या आफताब, तेरी महफिल में किस्मत आजमाकर, पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया, मधुबन में राधिका नाचे रे... आदि गीतों ने अपने समय में खूब धूम मचाई और आज भी यह सदाबहार हैं। 8
आठ बार मिला फिल्म फेयर : उनके लिखे गानों वाली तीन फि़ल्मों को लगातार फि़ल्म फ़ेयर एवार्ड मिला था। फिल्म चौदहवीं का चांद, घराना, बीस साल बाद को यह एवार्ड मिला था। उन्हें खुद आठ बार यह एवार्ड हासिल हुआ। यह अपने आप में एक रिकार्ड और मिसाल है। सदी की सबसे अच्छी फिल्म मुगले आजम के सभी गाने लिखे। सैकड़ों फि़ल्मों में अमर गीत लिखकर सारी दुनिया में छोटे से शहर का नाम रोशन कर दिया।
साहित्य मेंमहारतः आमतौर पर शकील बदायूंनी को फिल्मी शायर कहा जाता है। उनकी तमाम गजलों समेत भक्ति शायरी इस बात का पुख्ता सुबूत है कि वह सिर्फ फिल्मी शायर नहीं थे। उन्होंने साहित्य में भी भरपूर योगदान दिया है। उनकी किताब रानाइयां, नगमा-ए फिरदौस, सनम-ओ-हरम, दबिस्तान, धरती को आकाश पुकारे आदि किताबें अद्वितीय शायरी से भरी पड़ी हैं। जरूरत इस बात की है इनको करीब से देखा जाए।

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