कर्मचारी, नेता दोनों 50 साल में हों रिटायर


कर्मचारी, नेता दोनों 50 साल में हों रिटायर

उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि कि 50 साल से ज्यादा उम्र के कर्मचारियों की कार्य कुशलता की समीक्षा की जाएगी। उसके आधार पर सरकार की तरफ से उन्हें रिटायर कर दिया जाएगा। एक तरह से सरकार की यह सोच सही है कि जो कर्मचारी काम करने अयोग्य हो तो उसको सरकार की तरफ से ही रिटायर कर दिया जाए। इसकाएक बड़ा फायदा यह होगा कि सरकार को बेवजह कर्मचारी को ढोना नहीं पड़ेगा। दूसरे, यह कि शिक्षित युवा बेरोजगारों को सेवा का मौका मिलेगा। बेशक दूरदर्शी सरकार की यह बेहतरीन सोच है।
      कर्मचारियों की ही तरह यह बात नेताओं पर भी लागू होनी चाहिए। कर्मचारी विभाग का एक पटल संभालते हैं, जबकि हमारे वोट से चुने गए नेता पूरा प्रदेश और देश चलाते हैं। कर्मचारियों से ज्यादा जिम्मेदारी नेताओं के कंधों पर रहती है। इसलिए जनता को भी चाहिए कि ग्राम पंचायत/वार्ड से लेकर एम.पी. तक ऐसे किसी नेता को वोट न दें जिसकी उम्र 50 साल से ज्यादा हो। आखिर यह कौन सा मानक है कि 50 साल का कर्मचारी बूढ़ा और 50 साल का नेता जवान होगा? नेताओं को भी 50 की उम्र में रिटायर किया जाना चाहिए। इसका एक फायदा यह होगा कि देश-प्रदेश के नेताओं की कार्य कुशलता प्रभावित नहीं होगी। दूसरे, अगर युवा, होनहार नेता आएंगे तो देश तरक्की की राह पकड़ेगा और फिर सोने की चिड़िया बन सकता है। ऐसा होना बेहद जरूरी है, क्योंकि हिन्दुस्तान का संविधान भी समता की बात करता है।

यह भी जरूरी है...

  • नेताओं को भी कर्मचारियों की तरह 50 साल की उम्र में रिटायर कर दिया जाए।
  • नेताओं पर भी कर्मचारियों की तरह नई पेंशन स्कीम लागू की जाए। यानी उन्हें भी पेंशन से वंचित किया जाए।
  • विधानसभा-विधान परिषद की सदस्यता के लिए ग्रेजुएशन और लोकसभा-राज्यसभा की सदस्यता के लिए पोस्ट ग्रेजुएशन जरूरी किया जाए।
  • कानून मंत्री बनने के लिए एल.एल.बी. की डिग्री, स्वास्थ्य मंत्री के लिए एम.बी.बी.एस., समाज कल्याण मंत्री के लिए समाजशास्त्र, मानव संसाधन विकास मंत्री के लिए एम.एड., वित्त मंत्री को अर्थशास्त्री होना अनिवार्य हो। इसी तरह अन्य मंत्रियों की योग्यता का निर्धारण उनको आवंटित विभाग के अनुसार किया जाए।
  • मुफ्त फोन, हवाई सुविधा, डीजल-पेट्रोल, रेल आदि तमाम सुविधाओं में सालाना अरबों रूपये खर्च होते हैं, उनमें भी कटौती की जाए। आखिर उन्हें वेतन तो मिलता ही है।
  • नेताओं की पुरानी पेंशन, मोटा वेतन, सब्सिडी का खाना बंद किया जाए, जिस पर सालाना अरबों रुपये का खर्च आता है।
  • नेताओं के पद से हटने के बाद फ्री मेडिकल सुविधा बंद की जाए। इससे सरकारी खजाने से करोड़ों-अरबों रुपये खर्च होते हैं। यह बचत होगी तो देश के विकास में लगेगी।
जब सांसद-विधायकों की तनख्वाह बेतहाशा बढ़ाई जाती है तो सभी पार्टियों के नेता विरोध नहीं करते हैं। क्या देश पर इनकी तनख्वाह की बेतहाशा वृद्धि से अरबों रूपये का भार नहीं पडता ? अजब-गजब सोच हैं... जब कर्मचारियों, अधिकारियों, शिक्षकों को 50 साल की उम्र में हटाने पर विचार किया जा सकता तो उपरोक्त बिंदुओं पर विचार क्यों नहीं किया जा सकता??? अभी इतना ही, बाकी फिर...

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