'बुलेट' का लेट होना ही बेहतर...!
'बुलेट' का लेट होना ही बेहतर...!
खतौली/मुजफ्फरनगर भीषण रेल हादसे के बाद तो यही तमन्ना की सकती है कि हिन्दुस्तान में बुलेट का लेट होना ही बेहतर है। वैसे तो देश में बुलेट चलाने का फैसला अच्छा बात है। विकास के लिहाज से यह दूरगामी सोच है। फिलहाल खतौली रेल हादसे से हमें सबक लेना जरूरी हो गया है। पहला सबक, यह कि बुलेट से पहले उन रेलवे ट्रक को दुरुस्त करने पर ध्यान दिया जाए, जो ब्रिटिश साम्राज्य से हमें सौगात में मिले थे। दूसरा सबक, यह कि बुनियादी समस्याओं और जरूरतों को नजरअंदाज करके बड़े झूठ न बोले जाएं। आखिर लफ्फाजी के दम पर टिके रहने की भी कोई मियाद होती है, कोरी बयानबाजी से जनता को कब तक बेवकूफ बनाया जा सकेगा ? हादसे के बाद मौतों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। सोचिए, जरा बुलेट ट्रेन के साथ ऐसा हादसा होता तो...? ऐसा खयाल करने भर से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
खराब ट्रैक के मामले में कोई भी अपनी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। अच्छे कारनामों और उपलब्धियों का श्रेय जब लपक कर हासिल किया जाता है तो नैतिकता के नाते इस हादसे की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। अब अपने बचाव के लिए निम्न स्तर पर कार्रवाइयों का सिलसिला शुरू हो गया है। फिलहाल सीनियर डिविजनल इंजीनियर, असिसटेंट डिविजनल इंजीनियर, सीनियर सेक्शन इंजीनियर, जेई पाथ-वे को सस्पेंड कर दिया गया है। चीफ ट्रैक इंजीनियर (नार्दन रेलवे) का ट्रांसफर किया गया है। इसके अलावा डीआरएम, जीएम नार्दन रेलवे और मेंबर इंजीनियर रेलवे बोर्ड को छुट्टी पर भेजने की कार्रवाई की गई है। सात अन्य कर्मचारियों को भी सस्पेंड कर दिया गया है। इस सबके बावजूद उन गमजदा परिवारों का क्या होगा, जो अपना सब कुछ गंवा चुके हैं। सरकार लाख मुआवजा दे दे, क्या उस रकम से किसी के जिगर का टुकड़ा, भाई, बेटा, पति, पिता मिल सकता है। हमारे देश के जिम्मेदार जरा एक बार अपने दिल पर हाथ रखकर जरूर सोचें।
खराब ट्रैक के मामले में कोई भी अपनी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। अच्छे कारनामों और उपलब्धियों का श्रेय जब लपक कर हासिल किया जाता है तो नैतिकता के नाते इस हादसे की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। अब अपने बचाव के लिए निम्न स्तर पर कार्रवाइयों का सिलसिला शुरू हो गया है। फिलहाल सीनियर डिविजनल इंजीनियर, असिसटेंट डिविजनल इंजीनियर, सीनियर सेक्शन इंजीनियर, जेई पाथ-वे को सस्पेंड कर दिया गया है। चीफ ट्रैक इंजीनियर (नार्दन रेलवे) का ट्रांसफर किया गया है। इसके अलावा डीआरएम, जीएम नार्दन रेलवे और मेंबर इंजीनियर रेलवे बोर्ड को छुट्टी पर भेजने की कार्रवाई की गई है। सात अन्य कर्मचारियों को भी सस्पेंड कर दिया गया है। इस सबके बावजूद उन गमजदा परिवारों का क्या होगा, जो अपना सब कुछ गंवा चुके हैं। सरकार लाख मुआवजा दे दे, क्या उस रकम से किसी के जिगर का टुकड़ा, भाई, बेटा, पति, पिता मिल सकता है। हमारे देश के जिम्मेदार जरा एक बार अपने दिल पर हाथ रखकर जरूर सोचें।
फिलहाल ख्वाब ही है बुलेट:
खबर तो यहां तक थी कि हमारे देश में बुलेट ट्रेन को जमीन पर उतारने का ख्वाब हकीकत की तरफ बढ़ रहा है। यह भी सुनने में आया था कि आने वाले दिनों में हिन्दुस्तानी जमीन पर ‘हाइपरलूप’ नाम की सुपर ट्रेन भी दौड़ सकती है। इसकी रफ्तार 1,223 किलोमीटर प्रति घंटा है। अगर यह ट्रेन यहां चली तो कई दिनों का सफर कुछ ही घंटों में तय हो जाएगा। खबर यह भी थी कि बुलेट के लिए जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अब गुजरात के साबरमती में भूमि पूजन करने वाले हैं। शुरुआत के बाद यह प्रोजेक्ट छह साल में पूरा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। यह ट्रेन मुंबई से अहमदाबाद तक दौड़ाने का प्लान है। बुलेट प्रोजेक्ट 1.10 हजार करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है। इसका बड़ा भाग यानि 88 हजार करोड़ रुपये हिन्दुस्तान को जापान से बतौर कर्ज मिलेगा। इस पर 0.1 फीसदी हमारे देश को देना होगा। इसके कलपुर्जे भी हिन्दुस्तान में ही बनाए जाएंगे।
ज़रूरी था हादसों से सबक:
पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा ट्रेने बेपटरी हुई हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो ट्रेन पटरी से उतरने के 206 हादसे हो चुके हैं। इनमें 333 लोगों की मौतें हो चुकी हैं। सन 2014-15 में डीरेलमेंट की 135, 2015-16 में 107 तथा 2016-17 में 104 दुर्घटनाएं हुई। ये आंकड़े इससे पहले के डीरेलमेंट के हादसों के मुकाबले काफी संगीन हैं। क्योंकि इससे पहले 2013-14 में केवल 53 डीरेलमेंट हुए थे। इनमें सिर्फ 6 लोग मारे गए थे। वैसे पिछले पांच साल के आंकड़े लें तो कुल 586 रेल हादसे हुए। इनमें 53 फीसद डीरेलमेंट के थे। अब टक्कर के हादसे तो न के बराबर हो गए हैं, जबकि पटरी से उतरने के हादसे आम होने के साथ-साथ जानलेवा साबित होते जा रहे हैं।
पिछले तीन साल में डीरेलमेंट के छह बड़े हादसे हो चुके हैं। इनमें एक 20 मार्च, 2015 को रायबरेली के नजदीक देहरादून-वाराणसी जनता एक्सप्रेस का हादसा है। इसमें 58 लोग मारे गए थे। दूसरा 20 नवंबर, 2016 का पुखरायां में इंदौर-राजेंद्र नगर एक्सप्रेस का हादसा था। इसमें 150 मौतें हुई थी। तीसरा बड़ा हादसा जगदलपुर-भुवनेश्र्वर हीराखंड एक्सप्रेस का है, जो 21 जनवरी 2017 को कुनेरू स्टेशन के नजदीक आंध्र प्रदेश में हुआ था। इसमें करीब 40 लोग मारे गए थे। इस दौरान रेल मंत्रालय ने ट्रैक के रखरखाव की रकम सालाना 5.5 हजार करोड़ रुपये से बढ़ाकर लगभग 10 हजार करोड़ रुपये कर दिया है। इसके बावजूद सकारात्मक और अपेक्षित सुधार नजर नहीं आ रहा है।
पिछले तीन साल में डीरेलमेंट के छह बड़े हादसे हो चुके हैं। इनमें एक 20 मार्च, 2015 को रायबरेली के नजदीक देहरादून-वाराणसी जनता एक्सप्रेस का हादसा है। इसमें 58 लोग मारे गए थे। दूसरा 20 नवंबर, 2016 का पुखरायां में इंदौर-राजेंद्र नगर एक्सप्रेस का हादसा था। इसमें 150 मौतें हुई थी। तीसरा बड़ा हादसा जगदलपुर-भुवनेश्र्वर हीराखंड एक्सप्रेस का है, जो 21 जनवरी 2017 को कुनेरू स्टेशन के नजदीक आंध्र प्रदेश में हुआ था। इसमें करीब 40 लोग मारे गए थे। इस दौरान रेल मंत्रालय ने ट्रैक के रखरखाव की रकम सालाना 5.5 हजार करोड़ रुपये से बढ़ाकर लगभग 10 हजार करोड़ रुपये कर दिया है। इसके बावजूद सकारात्मक और अपेक्षित सुधार नजर नहीं आ रहा है।

बेहतरीन विश्लेषण
ReplyDeleteआभार
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